Wednesday 18 December 2013

असर आप पर तब ये कर जाएगी ...

असर आप पर तब ये कर जाएगी ...
छू कर आपको जब गुज़र जाएगी ...

करें तैरने का जो हम हौसला ...
समंदर की आदत सुधर जाएगी ....

ज़मीं आपकी आसमां आपका ...
निकल कर भी ये जां किधर जाएगी ...

ये चाँद अब जो छा आसमां पे गया ...
सितारों पे अब क्या नज़र जाएगी ...

"मुसाहिब" किनारा भी मिल जाएगा ...
ये तन्हा भी कब तक लहर जाएगी ...

लफ्ज़ ग़ज़लों में ढलते नहीं ...

होश में बात करते नहीं ...
खोल कर आँख चलते नहीं ...

बेचकर राज़ खुद्दारी के ...
घर सजाने से सजते नहीं ...

जब दिये को भी बुझना ही हो ...
रोके तूफ़ान रुकते नहीं ...

दर्द होता न गर पास में ..
लफ्ज़ ग़ज़लों में ढलते नहीं ...

वक़्त कितना भी मरहम बने ...
ज़ख्म जल्दी से भरते नहीं ...

रब से रखते न रंज आप तो ..
आज तन्हा भी चलते नहीं ...

प्यार सबसे "मुसाहिब" करे ...
लोग पर प्यार करते नहीं ...

मिले आज ख़त जो पुराने लिखे हैं ..

फ़साने वो जिन में सुहाने लिखे हैं ...
मिले आज ख़त जो पुराने लिखे हैं ...

अभी तक भी बातें कही जो नहीं हैं ..
उन्हें छेड़  कर  ही तराने लिखे हैं ...

कहीं वो कहानी भी धुल ही न जाये ...
बुजुर्गों के दिल में ज़माने लिखे हैं ...

यहाँ अब ग़ज़ल से कहाँ प्यार होता ...
यहाँ अट -पटे सबने गाने लिखे हैं ...

कभी अश्क़ आँखों में हो या खुशी हो ...
"मुसाहिब" ग़ज़ल के बहाने लिखे हैं ...

Wednesday 30 October 2013

जन्नत सी हँसी मेरी ये कायनात होनी है ...

मुद्दत बाद दिल के  मुज़रिम से बात होनी है ...
आँखों से  वही रिमझिम सी बरसात होनी है ...

तजुर्बेकार कहते हैं एक नयी शुरुआत होनी है ...
मेरे हिस्से में हैं शिकवे मेरी फिर मात होनी है ...

मेरी पलकें करो अब नींद से तौबा सारी रात ...
उनके जलवों के चर्चे तो सारी  रात  होनी है ...

गुज़ारिश है नज़रों से उसे बस कैद कर लेना ...
न जाने फिर कहाँ कैसे ये हँसी मुलाक़ात होनी है ...

करेगी ये ज़मीं बोसा उनके पाक क़दमों का ...
जन्नत सी हँसी मेरी ये कायनात होनी है ...

कोई शेख हो दुनिया का या हो वो "मुसाहिब" ..
अंज़ाम ऐ ज़िन्दगी में सबकी वफात होनी है ...

जलने से जादा जलाती है मोहब्बत ...

ये कहने कि बातें है याद आयेंगे आप ...
ये लम्हा गुजरते ही भूल जायेंगे आप ...

अब बस भी करो यूँ नज़रों से खेलना ..
शायर और कितनो को बनायेंगे आप ...

जलने से जादा जलाती है मोहब्बत ...
ये बात किस किस को बतायेंगे आप ...

आप हो तो ग़ज़ल खुद लबों पर चले आते ...
हो के दूर हमसे कितना रुलायेंगे आप ...

नया है ज़माना दिल भी बदल गए हैं यहाँ ...
पुराने दिल कहानी कब तक सुनायेंगे आप ...

जिस दिन "मुसाहिब" ने मुकम्मल ग़ज़ल लिख दी ...
हो के बेचैन बहुत मुझतक चले आयेंगे आप ...

कह दो आज जो भी है तुम्हारे दिल में ...

कह दो आज जो भी है तुम्हारे दिल में ...
ये छोटी सी जो बात है तुम्हारे दिल में ....

कह दो की कितनी मोहब्बत है तुम्हे ...
कह दो की हम रहते हैं तुम्हारे दिल में ...

कह दो की तेरे दिल का हर साज़ हु मैं ...
गा दो जो भी अफ़साने हैं तुम्हारे दिल में ...

वो एक बार का मिलना ख्वाबों में कभी ...
और कैद हो जाना  मेरा तुम्हारे दिल में ...

न छिपा जो कुछ भी है तेरे दिल में "मुसाहिब"...
अब मुझे सब है पता क्या है तुम्हारे दिल में ...

ऐसे हालत को बयाँ करने लिखते हैं ग़ज़ल ...

हाल- ऐ - दिल पे ही शायर बुनते है ग़ज़ल ...
जो बात दिल की समझते हैं सुनते है ग़ज़ल ....

लिख दे जो मचलकर दास्ताँ-ऐ-दिल कोई ...
कहने वाले इसे ही कहते हैं ग़ज़ल ...

दर्द जब अश्कों से बयां होने न लगे ...
ऐसे हालत को बयाँ करने लिखते हैं ग़ज़ल ...

क्या करना किसी बदगुमाँ दिल पे मर कर ...
अब मरते नहीं किसी पे ,  जीते हैं ग़ज़ल ...

कोई भी नशां रहता ही नहीं दो पल भी ...
अब तो "दीवान-ऐ-मुसाहिब" से पीते हैं ग़ज़ल ...

मुशायरा "मुसाहिब" के बिना वीरां सा लगा ...

जबसे वो मुझ पे मेहरबां सा लगा ...
ज़माने को मैं कितना बदगुमां सा लगा ....

वो समझता था ग़ज़ल अलफ़ाज़ है नाहक ...
हिकायतें अपनी जो उसने देखी हैरां सा लगा ...

गौर से सुनना तजुर्बे की बातें जो कहें  ...
उनका हर लफ्ज़ मुझे दबिस्ताँ सा लगा ...

सुनी जितनी भी मोहब्बत पे ग़ज़ल हमने ...
तेरे मेरे ही दिल ऒ दास्ताँ सा लगा ...

जख्म जो भी लगे उनकी नज़रों से कातिल ...
दर्द छोडो   मुझे तो अरगुमां सा लगा ...

न वो आया न आँखों में नमीं आयी ...
मुशायरा "मुसाहिब" के बिना वीरां सा लगा ...

सब के घायल है मिले जिस तरफ देखा उसने ...

जब से दीवाने को हद से गुजरते देखा उसने ...
न जाने क्यूँ कर लिया है वस्ल से तौबा उसने ...

निकल आये जो परदे से हुआ हंगामा ऐसा ...
सब के घायल है मिले जिस तरफ देखा उसने ...

ताजमहल पे नज़र अब टिकती ही नहीं ...
जबसे तौफिक ऐ नज़र से मेरी तरफ देखा उसने ...

उसके आने से खिल उठता है गुंचा सारा ...
यूँ कायनात बदलना जाने कहाँ से सीखा उसने ...

संगमरमर की मूरत पे मोहब्बत की सजावट ...
पाया है खुदा से तहारत का इजाफा उसने ...

परेशां है "मुसाहिब" वो आयेंगे तो बैठेंगे कहाँ ...
सजा दिया उनकी तस्वीर से गोशा गोशा हमने ...

दिल लगाने का यहाँ इब्राम न कर ...

बेरुखी का गैरों पे इलज़ाम न कर ...
दिल लगाया है तो अब आराम न कर ..

लादवा है ये दर्द-ऐ-बेखुदी यारब ...
इसे दिल से न लगा एहतराम न कर ...

गर मय में कतरा अश्क का हो ...
वो मय न उठा फिर जाम न भर ..

बेमेहर मौसम तोड़ देता है आशियाँ ...
अब घर न बना मकाम न कर ..

एक पल भी हो तू मुझसे जुदा ...
मेरे गम तू ऐसा काम न कर ...

ये इल्जाम तो खुशियों पे है लगा ...
ऐ गम तू खुद को बदनाम न कर ...

बदनाम है तू उसको तो न कर ...
चल घर अब यहाँ पर शाम न कर ...

हाँ लुट तो गया इस खेल में तू ...
पर तौहीन-ऐ-मोहब्बत आम न कर ...

"मुसाहिब" जमाना सनमपरस्तों का न रहा ...
दिल लगाने का यहाँ इब्राम न कर ...

Friday 18 October 2013

या यूँ कहो की दीवान-ऐ-मुसाहिब है तू .

न हो तमसील जिसकी वो नाहिद है तू ..
या यूँ कहो की मशीयत का वाजिद है तू ...

खता जितनी भी है हजीमत मेरी ..
या यूँ कहो की हर बात पे वाजिब है तू ...

हो ही जाती है पैकार ऐ मोहब्बत बेजा ..
या यूँ कहो की इस इल्म में माहिर है तू ...

बेनजीर है ज़माने में हसरत तेरी ..
या यूँ कहो की इस बात से नावाकिफ है तू ...

तेरी हर एक अदा ग़ज़ल है मेरी ...
या यूँ कहो की दीवान-ऐ-मुसाहिब है तू .

तमसील - Example , नाहिद - Beauty, मशीयत - God's Will , हजीमत  - Defeat, पैकार - war, बेनजीर - matchless , दीवान - collection of Ghazals

Thursday 3 October 2013

हो चुके है हम भी छुपाने में मुसीबतें माहिर ...

बिसात ऐ जिंदगी पे कज़ा की हरकतें काफ़िर ...
हो  चुके है हम भी छुपाने में  मुसीबतें माहिर ...

एक रोज़ जो बताया दिल दुखता है फिराक से ..
अब आजमाता  है मुझपे ही हिमाकतें शातिर ...

आता है जमीं पर फिर वो कातिब -ऐ -तकदीर ...
करता है गर अता दिल से कोई इबादतें ताहिर ...

वो ज़माना क्या गया जज्बा ऐ दिल  बदल गए ..
पाता है बेसबब अब अपनों से ही नफरतें साहिर ..

क्या पूछते हो की हिज्र में कैसा है ये "मुसाहिब"...
हाल ऐ दिल की तो तुमपर सब नज़ाकतें जाहिर..


कज़ा -Death , फिराक -Separation , कातिब -ऐ -तकदीर  - Almighty, ताहिर -Pure , साहिर - Friend,  हिज्र  -Separation  

Monday 23 September 2013

"मुसाहिब" दिल ही जलाया करते ..

तुम बेसबब याद न आया करते ..
हम  यूँ ही वक़्त न जाया  करते ..

जख्म हमको दिखाते तो शायद ..
मर्ज ज़माने से तो  अच्छा करते ..

रूख़ बदल लिया  बेतलब  उसने..
 कुछ  तो मुझपर  भरोसा रखते ..

हुस्न - ऐ -जमाल छुपाते  वो रहे ..
उनके जख्मो  पे भी बोसा  करते ..

जुल्फ का खुलना तो  बहाना   है ..
मुझे गैर नज़रों  से छुपाया करते  ..

काश दर्द भी जल जाता चरागों में .
"मुसाहिब" दिल ही जलाया करते ..

(जमाल - Beauty ,  बोसा - Kiss )

Sunday 22 September 2013

या ऱब मज़बूरी ऐसी भी क्या है तेरी ...

या ऱब मज़बूरी ऐसी भी क्या है तेरी ...
एक यकीं तो दिल बाक़ी रज़ा है तेरी ...

दर्द हद से ग़ुज़र गया पर साथ न छोड़ा ...
ज़िंदगी मुझसे इतनी ख़फा है मेरी...

नफ़रत की महफ़िल में दिल लगा बैठे ...
ज़िंदगी में बस एक ही खता है मेरी ...

ग़ज़ल में भी अश्कों को छुपा न सकेगा ...
"मुसाहिब" ताउम्र यही सजा है तेरी ...

Friday 20 September 2013

वक़्त और तुम

वक़्त और तुम कितने मिलते जुलते हो ..
वो भी न रहा मेरा तुम भी बदल गए ...

Wednesday 11 September 2013

हक़ीक़त कितनी भी हो इनमे ये सपना ही निकलता है ....

कुछ लोग समझते हैं ये दिल बेईमा ही निकलता है ...
टूटा है पर अब भी तेरे लिए अरमा ही निकलता है ...

परदे में ही रहने दो अब क़ातिल का मेरे नाम ...
उठता है जो परदा तो कोई अपना ही निकलता है ...

न जाने कैसे कहते हो कोई अपना नहीं मिलता ...
मिलता है जो कोई मुझसे मेरा मेहमा ही निकलता है ...

क्या सारे ज़माने के इंसान शैय्याद हो गए हैं ...
परिंदा कहीं कोई भी मिलता है सहमा ही निकलता है ...

“मुसाहिब” के हिस्से भी आएगी मोहब्बत की दास्तां ...
हक़ीक़त कितनी भी हो इनमे ये सपना ही निकलता है ....

Sunday 8 September 2013

इस बस्ती में इंसा अब नहीं रहता ...

जब मौसमों को बहारों का सबब नहीं रहता ...
फिर बहारों को भी खिलने का अदब नहीं रहता ...

यूँ तो दिल टूटने से कभी साँसे नहीं रुकती ...
पर इन साँसों का फिर कोई मतलब नहीं रहता ...

शाम होते ही तितलियाँ कितनी सहम जाती हैं....
लग रहा है इस बस्ती में इंसा अब नहीं रहता ...

असर तो होता है याद करने में तड़प के वरना ...
बेखुदी में दिल आजकल यूं ही बेसबब नहीं रहता ...

ग़ज़ल सुनकर लोगों के आँखों मे आँसू नहीं आए ...
लगता है मुशायरे मे आजकल मुसाहिब नहीं रहता ...

Thursday 5 September 2013

एक ख़त से मेरे घर पे कुछ खैर तो मिलेगा ..

मुझको न मिला तो किसी और को मिलेगा ..
कुछ ऐसा न चाहिए दिल के बगैर जो मिलेगा ..

किस यकीं से कहते हो पत्थर जो तूने फेंका ...
वो अपनों को नहीं किसी गैर को लगेगा ...

टुटा हुआ था दिल इसे बस्ती सा कर दिया ..
कोई नहीं है जिनका उन्हें एक ठौर तो मिलेगा ...

रहता है घर से दूर पर खबर लिखता रहता है ..
एक ख़त से मेरे घर पे कुछ खैर तो मिलेगा ..

लिख दे ग़ज़ल में अपनी हर दर्द -ऐ -दास्ताँ ..
कुछ तो सबक "मुसाहिब" किसी और को मिलेगा ..

Tuesday 3 September 2013

“मुसाहिब” साकी है गम का बस दर्द लिखता है ..

वो अगर अपना ठिकाना बदल लेंगे ...
हम भी रोने का बहाना बदल लेंगे ...

देखा है बच्चों के पर निकल आए है ...
अब वो अपना आशियाना बदल लेंगे ...

अगर वो याद आना छोड़ दे मुझको ...
हम भी अंदाज़ ऐ आशिक़ाना बदल लेंगे ...

बुजुर्गों का हाथ पकड़कर चलना नहीं आता ...
किसके बूते कहते हो की जमाना बदल लेंगे ...

ये मासूम हैं इन्हें सियासत से दूर ही रखना ...
मजहब नहीं बदलेगा अगर खिलौना बदल लेंगे ..

“मुसाहिब” साकी है गम का बस दर्द लिखता है ..
अंदाज़ कुछ तो बदलेगा अगर पैमाना बदल लेंगे ...

Thursday 29 August 2013

कोई न कोई तो पीछे कहीं छूट जाता है ..

इतना नाजुक है दिल अक्सर टूट जाता है ..
ऊँची आवाज़ में भी बोलो तो रूठ जाता है ..

कोशिशें लाख करो सबके साथ चलने की ..
कोई न कोई तो पीछे कहीं छूट जाता है ..

आईना हो या हो किस्मत किसी के दिल की ..
पत्थर दिल से लगे तो अक्सर  फूट जाता है ..

वो थकता नहीं था दिल की बातें करते करते.
अब जिक्र भी हो दिल का तो रूठ जाता है ...

हैरां न हो "मुसाहिब" दिल के टुकड़े देखकर  ..
दरारें पड़ ही जाती है जब रिश्ता टूट जाता है ..

Wednesday 28 August 2013

अब महँगा बिकेगा ये दिल प्यार के बाज़ार में ..

पार कर सकता हूँ मैं हर दरिया तेरे प्यार मे..
शर्त ये है की सनम उस पार मिले इंतज़ार मे ..

आज मेरे ही क़त्ल के इश्तिहार थे अखबार में ..
और नीचे मेरे ही नाम लिखे थे गुनहगार में ..

इस तरह हर ख़बर मेरे क़ातिल को मिलती रही ..
कोई तो रह रहा होगा उनका मेरे सिपहसालार में ..

टूटा हुआ है दिल टूटने का दर्द समझता होगा ..
अब महँगा बिकेगा ये दिल प्यार के बाज़ार में ..

कितना सताएगा अपने दिल को बेवजह “मुसाहिब” ..
सिर्फ तू ही तो नहीं इस लुटा प्यार के रोजगार में ..

Tuesday 27 August 2013

तुम भी तो कभी आजमाओ खुद को ..

मुझसे कहते हो भूल जाओ मुझको ..
तुम भी तो कभी आजमाओ खुद को ..

खुद से ही न उठ जाए भरोसा मेरा ..
इतना भी न झूठा बनाओ मुझको ..

ख़ुशी बिगाड़ देती है आदत सबकी ..
गम ही बेहतर है कोई बताओ उन को ..

कर दी नीलामी हमने भी दिल की ..
आखिरी रात है दुल्हन सा सजाओ इस को ..

जड़ें सूखी है तभी पत्ते भी सूखे हैं ..
छत से पहले नीव तो बनाओ इस को ..

नया दिल टूट ही जता है अक्सर ..
"मुसाहिब " इतना न सताओ खुद को ..

Thursday 25 April 2013

सौ बार सोचना पड़ता है ..

अब बाज़ार से खाली हाथ लौटना पड़ता है ..
घर आने से पहले सौ बार सोचना पड़ता है ..

प्यार कितना भी कर लूँ वो पराया ही तो है ..
जो अपनों ने किया सौ बार सोचना पड़ता है ..

उस नशे में मैं कहीं भूल न ज़ाऊ तुझको ..
मुझे पीने से पहले सौ बार सोचना पड़ता है ..

लौट पाउंगा सलामत शाम तक मैं घर  ..
घर से जाते हुए सौ बार सोचना पड़ता है ..

जाने कौन कब मांग ले हर लम्हे का हिसाब ..
सांस लेने में भी सौ बार सोचना पड़ता है ..

सर से पांव तक क़र्ज़ में डूबा है "मुसाहिब"..
मरने में भी अब सौ बार सोचना पड़ता है ..

नयी ग़ज़ल आने वाली है ..

जो काफिरों की फिर नयी नसल आने वाली है ..
मुजाहिदों पे भी खुदा की नयी फज़ल आने वाली है ..

यहाँ तुम बैठे रहे इंतज़ार में यूँ ही बेवजह ..
वहां उनके खेतों में नयी फसल आने वाली है ..

आज शाहों को देखा है गरीबों के घर में खाते  ..
लगता है चुनावों की नयी पहल आने वाली है ..

यूँ ही नहीं कोई खून को पसीने में बहा रहा ..
लगता है अमीरों की नयी महल आने वाली है ..

आज दिखा है जी भर के रोते हुए "मुसाहिब"..
दर्द -ऐ-ज़िन्दगी पे नयी ग़ज़ल आने वाली है .. 

Tuesday 23 April 2013

कुछ हसरतें बची हुई है ..

अभी ज़िन्दगी की कुछ नुमाएशें बची हुई हैं ..
अभी लौट आने की कुछ उम्मीदें बची हुई हैं ..

कैसे कहते हो की अब ये दुनिया नहीं अच्छी ..
अभी यहाँ बुजुर्गों की कुछ दुआएं बची हुई हैं ..

कहो कैसे छोड़ दें तुम्हे याद करना हम अब..
अभी मेरी जिंदगी की कुछ साँसे बची हुई हैं ..

कैसे कहते हो इसे मात मेरी अभी से तुम ..
मोहरों की अभी मेरी कुछ चालें बची हुई हैं ..

नींद उसको भी परेशां करती है रात रात भर ..
पर पेट भरने को अभी कुछ कमाई बची हुई है ..

दिल हाथ लिए घूमता है मुसाहिब" अब भी..
लगता है तड़पने की कुछ हसरतें बची हुई है .. 

अमानत में खयानत कर भी जाते है ............

जो बिछड़ते हैं फिर कभी मिल भी जाते है ..
खुली आँखों के सपने सच हो भी जाते है ..

यूँ ही काट लेंगे जिंदगी इंतज़ार में सोचकर ..
जो उड़े थे बेखबर शाम तक लौट भी आते है ..

घर से निकलते हुए उसने सौ बार पलटकर देखा ..
सुना है मुड़कर देखने वाले वापस भी आते है ..

यूँ ही करते रहो मशक्कत ताउम्र इश्क में ..
एहसासों को जुबां तक आने में वक़्त लग भी जाते है ..

इतने बेखबर होकर किसी पे भरोसा न रखो ..
आजकल लोग अमानत में खयानत कर भी जाते है ..

"मुसाहिब" तेरे बीमार होने से कुछ तो हुआ ..
जिनकी राहें तकता था वो अब मिलने भी आते है ..

Monday 22 April 2013

मेरे ख्वाब तोड़ देते हैं .....

क्यूँ न मुझे वो मेरी हाल पे छोड़ देते हैं ..
नींद में भी आकर मेरे ख्वाब तोड़ देते हैं ..

कुछ तो दर्द का एहसास उसे भी करा दे ..
जो मोहब्बत में बेवजह वादे तोड़ देते हैं ..

किस किस को बताएं की दिल से न खेल ..
है खिलौना नहीं जिसे फिर से जोड़ देते हैं ..

कर सैय्याद से बगावत आशियाँ जो बनाया ..
बच्चे भी तो एक दिन आशियाँ छोड़ देते हैं ..

अब तो आलम ये है की देख भी नहीं सकते ..
वो आहट सुनते ही अपना रास्ता मोड़ देते हैं ..

दिखे मोहब्बत का दर्द भी उनकी ग़ज़लों में ..
अब वो अपने मक्ते में "मुसाहिब" जोड़ देते हैं ..

Thursday 18 April 2013

तू झूठा ही एक वादा कर ले ..

नफरत ही चाहे जादा कर ले ..
तू झूठा ही एक वादा कर ले ..

मोहब्बत का तो टूटा है भरम
तू इनायत का ही वादा कर ले ..

जो चाहे है दामन के दाग देखना ..
पैराहन को अपने सादा कर ले ..

फिर वो खुद ही टूट जायेंगे बाँहों में ..
बस मोहब्बत जां से जादा कर ले ..

ख्वाब बरसेंगे हो के सच बारिश की तरह ..
तड़प अपनी "मुसाहिब" जमीं से जादा कर ले ..

(पैराहन - कपडे , जादा - ज्यादा )

Wednesday 17 April 2013

करती है धुन परेशां मुझको साज़ से ..

कब तक रुके रहोगे रस्मो रिवाज़ से ..
पास खींच लाउंगा तुझको आवाज़ से ..

एक बार बोल दे जो तुझे वास्ता नहीं ..
ख्वाबों से भी मिटा दूँ तुझको आज से ..

हर सुर कटे हुए हैं हर ताल बेमज़ा ..
करती है धुन परेशां मुझको साज़ से ..

यूँ तो मोहब्बत में दिलबर हुआ खुदा ..
कैसे कहूँ खुदा मैं तुझको नाज़ से ..

वो करते रहे तगाफुल हम पाते रहे सज़ा ..
दुनिया लगे है ग़ाफिल "मुसाहिब" को आज से ..

Tuesday 16 April 2013

जो रूठा न कभी ..

वो साथी कहाँ मिला जो था रूठा न कभी ..
वो इन्सां कहाँ मिला जो था झूठा न कभी ..

किस बात पे कहें की ज़माने से लडूंगा ..
वो कसम कहाँ मिला जो था टुटा न कभी ..

आईना भी देर तक मुझे सह न सका 
वो शीशा कहाँ मिला जो था फुटा न कभी ..

इस सफ़र में कौन खुद को महफूज़ रख सका ..
वो काफिला कहाँ मिला जो था लुटा न कभी ..

किस से कहे "मुसाहिब"  दिल की दास्ताँ ..
वो साथ कहाँ मिला जो था छुटा न कभी ..

Tuesday 9 April 2013

सितारा है वो भी ..

वक़्त यादों में रो गुज़ारा है जो भी ..
इबादत के जैसे ही प्यारा है वो भी ..

दर्द कितना छुपा है पीछे हँसी के ..
हँस के हमने मगर गुज़ारा है वो भी ..

क्या हुआ जो वो सूरत से अच्छा नहीं ..
फिर भी माँ का सबसे दुलारा है वो भी ..

आज देखने भी कोई छत पे आया नहीं ..
टूटता ही सही मगर सितारा है वो भी ..

रखी शर्त उसने सितम की हमेशा ..
इश्क की आग में अब गंवारा है वो भी ..

पहुचेगी कब तक खुदा तक कहानी ..
देखना मुझको अब नज़ारा है वो भी ..

हर एक ना पे ऐसे न रूठो "मुसाहिब"..
पास आने का बस एक इशारा है वो भी ..

Monday 8 April 2013

गिरते गिरते संभलना सीख लेगा ..

वो खुद ही संभलकर चलना सीख लेगा ..
देखना गिरते गिरते संभलना सीख लेगा ..

यूँ ऊँगली पकड़ के क्या चलना सिखाना ..
छोड़ दो इस शहर में वो चलना सीख लेगा ..

जलने दो थोडा अगन में उसे भी ..
शमा की जलन में वो जलना सीख लेगा ..

बनाने दो तिनकों का एक घर उसे भी ..
वो खुद ही आशियाँ बदलना सीख लेगा ...

गाने दो जी भर के नगमें ग़मों के ..
हर शब्द फिर ग़ज़ल में ढ़लना सीख लेगा ..

लगाने दो दिल इस फरेबी जहां में ..
चैन खोते ही वो हाथ मलना सीख लेगा ...

सियासत से दुरी बना दो "मुसाहिब"..
वो बातों को जुबां से तलना सीख लेगा ..

Friday 5 April 2013

उसने मुड़कर ना देखा ...

इस सितमगर ज़माने में क्या कुछ ना देखा ..
आरज़ू थी वफा की वफ़ा ही ना देखा ..

वो कह कर गए कोई बेहतर मिलेगा ...
कभी कोई फिर उनके जैसा ना देखा ...

कहा था किसी ने लुटा दो ये हस्ती ..
बात जिसकी भी मानी फिर उसी को ना देखा ..

इतना दर्द -ऐ- जुबां है "मुसाहिब" ही होगा ...
सोचकर बस यही उसने मुड़कर ना देखा ...

दिल लगाये कहाँ ..

वफ़ा ढूढ़ते तुम भी आये कहाँ ...
हुस्न के खेल में दिल लगाये कहाँ ..

वो दिखा फिर वही छोड़ आये जहाँ ..
वो बैठा था नज़रें गडाये वहां ..

तेरा फ़लसफ़ा कुछ नया भी नही ..
बैठे हैं सब दिल  जलाये यहाँ .....

वो नज़रों की बातों के दिन ढल गए ...
नज़र सब फरेबी बनाये यहाँ ..

"मुसाहिब" चलो शाम ढलने लगी है ...
रात बातों में ही कट न जाये यहाँ  ...

Thursday 4 April 2013

चेहरे पे पहले चेहरा लगायें ...

सबने सोचा की इसपे भी पहरा लगायें  ...
चलो इसके भी सिर पे अब सहरा लगायें  ...

रंगों में भी अब मिलावट है इतनी ..
कहाँ मिल रहा वो जो गहरा लगायें ...

रख सके न हिफाज़त से साँसों को हम तो ...
तेरे हुस्न पे क्या हम पहरा लगायें ....

पूछा जो मैंने सियासत सिखा दे ..
कहा चेहरे पे पहले चेहरा लगायें  ...

घर से निकलने को है अब "मुसाहिब"..
 फिजाओं ने सोचा की कोहरा लगायें ...

Wednesday 3 April 2013

ढलती उमर सब सिखा जा रही है ....

जिंदगी भी सियासत किये जा रही है ..
कर के झूठे बहाने वफ़ा जा रही है ..

जहाँ बैठे थे बूंदों के प्यासे कभी से ...
वहीँ से ये बारिश मुह छुपा जा रही है ..

जो नुस्खे थे सीखे मनाने के हमने ..
उन्ही से वो हो के खफ़ा जा रही है ....

रखूं क्या हिफाजत से तुम ही बताओ ...
ज़िन्दगी जब ये साँसे लुटा जा रही है ...

अब कौन सा मर्ज़ मेरा करोगे ..
लुट कर दिल मेरा बेवफा जा रही है ...

"मुसाहिब" यहाँ पर कहाँ कोई अपना ...
ये ढलती उमर सब सिखा जा रही है ....

फूलों से घायल हुए हैं ...

आदाओं से जिनके सताए हुए हैं ....
उनकी ही नज़रों के कायल हुए है ...

जब चाहा जोड़ा जब चाहा तोडा ....
फिर भी उनके ही पावोँ के पायल हुए है ..

कहाँ ढूढ़ते हो ज़माने में उसको ..
वो कहाँ मिल सका जिसके हायल हुए है ...

रखते हो पावों को काटों से डरकर ...
"मुसाहिब" तो फूलों से घायल हुए हैं ...

हायल - स्वप्न, ख्वाब 

Tuesday 2 April 2013

जहाँ तू नज़र ना आता है ...

कहने को अब न वो मेरा न मैं उसका ...
पर छुप छुप के वो मेरे अह्सार चुरा जाता है ...

मतला तक तो मैं भी नहीं सोचता तेरे बारे में ...
मकता में न जाने क्यूँ तेरा ही नाम लिखा जाता है ..

दिल कहता है नज़रे चुराकर तू भी गुनाह कर ले ...
वो जगह नहीं मिली जहाँ तू नज़र ना आता है ...

"मुसाहिब" की बातें है सुनकर गौर न किया ,,,,
बात अगर अच्छी हो तो ओहदा नहीं देखा जाता है ..

Sunday 31 March 2013

बस तुम बेवफा नहीं होते ...

पूछते हो मौत से पहले ख्वाइश आखिरी ...
रस्म ज़िन्दगी से पहले की होती तो ज़िन्दगी नहीं लेते ...

कौन चाहता है मोहब्बत दूसरी बार हो ...
ख्वाइश थी ज़िन्दगी लुटाने की बस तुम बेवफा नहीं होते ...

"मुसाहिब" हूँ तो हर फैसला सर आँखों पे है तेरा ...
सितम किस पे तुम ढाते अगर हम ही नहीं होते ....

Saturday 30 March 2013

बस्तियां जलीं होगी ...

यूँ ही रोता नहीं है आसमां जार जार होकर ...
फिर किसी आशिक को बेवफाई मिली होगी ...

अब जो शहर में उठता है धुआं वो चूल्हे का नहीं है ...
फिर सियासत की आग में बस्तियां जलीं होगी ...

ऐ बागबां अब तो बाज़ आ बेचने से इन्हें ..
ये कलियाँ तो नादान है कल फिर से खिली होगी ...

"मुसाहिब" तो है एक मोहरा शतरंज-ऐ -हुकूमत का ..
ये बहकी जो चाल है, गैरों ने चली होगी ...

तसव्वुर में यार के ..

नज़रें चुराते आये हो फलक -ऐ - पीर से ..
उस से छुपाऊ क्या जिसे सबकुछ पता रहे ....

गुजरी है ज़िन्दगी तसव्वुर में यार के ..
जीनत कहोगे उनको जो तुमको सता रहे ...

करते रहे इबादत ताउम्र यार के ...
अब जाने को हुए हम तो मोहब्बत जता रहे ...

खुद ही सूना ले अपनी दास्ताँ -ऐ -दर्द की ...
कोई नहीं सुनेगा तुम किसको बता रहे ...

"मुसाहिब" का दर्द है शाहों तक न जायेगा ...
हम अपनी कहानी खुद ही सबको सुना रहे ...

Monday 25 March 2013

कसम तोड़ी न जाएगी ..

ये अश्कों का खेल है इसे ज्यादा न समझ ....
हर रात जाग कर फ़िर काटी न जायेगी ....

हम शरीफों में आते हैं शराफत से रहने दो ..
गुस्ताखियों पे आये तो झेली न जायेगी ....

वो और था ज़माना जब होते थे सुखनवर ..
मिलावट की खाओगे बू लिखावट से आएगी ...

बस पल दो पल की खातिर अपना कहें तुम्हे ..
ये रिश्तों के खेल हमसे खेली न जाएगी ...

तुम ही रखो हुकूमत फरेबों के नाम पे ..
खा ली कसम जो हमने फ़िर तोड़ी न जाएगी ....

ये अश्कों का खेल है इसे ज्यादा न समझ ....
हर रात जाग कर फ़िर काटी न जायेगी ....

भाई सा मिठास चाहिए ...

ये दुनिया काफिरों से इतनी भर गयी है ...
ऐ खुदा तेरे होने का एहसास चाहिए ...

ये  मासूम आँखें खौफ़ से कितनी सहमी सी लग रही हैं ...
ऐ खुदा इन आँखों में फिर से तेरी तलाश चाहिए ...

हो तो ज़ाऊ मैं भी फना दरिया ऐ इश्क में ..
हाथ तुम थाम लोगे तेरा विशवास चाहिए ...

माना की तुम  ज़माने के चश्म ऒ चिराग हो ...
पर कोई ऐसा मिले जो ताउम्र दिल के आस पास चाहिए ..

मिटा दो ये मजहबी कड़वाहटें मेरे वतन से ऐ खुदा ..
हर शख्स में भाई भाई सा मिठास चाहिए ...

ये दुनिया काफिरों से इतनी भर गयी है ...
ऐ खुदा तेरे होने का एहसास चाहिए ...

Sunday 24 March 2013

मोहब्बत तो हो जाने दो .....

ये जो सफ़ेद चेहरे में फिरते है ...
सराफ़त देखना ये रात ढल जाने दो .....

आज सबको अपना जो कहते हो ...
फ़ितरत देखना सियासत में आ जाने दो ...

अभी पल भर भी हाथ छोड़ते नहीं हम दोनों ....
दूरियां देखना क़यामत तो आ जाने दो,,,,

कैद हूँ पिंजड़े में कैसे तुम्हे दिखाऊ ,,,,
उडाने देखना रिहायत तो आ जाने दो ....

कितना तजुर्बा है हम भी देखेंगे ....
ज़िन्दगी एक बार गफ़लत में आ जाने दो ...

फिर देखेंगे की कितने हैं हम भी तुम्हे प्यारे ....
हाथ उनके हुकूमत तो आ जाने दो ...

इबादत और पूजा साथ में मिलकर करेंगे हम ...
कहोगे सच ही कहता था मोहब्बत तो हो जाने दो .....

Wednesday 20 March 2013

कसम झूठी निभाएंगे ...

कसम खाए थे सब झूठे हमें मालूम भी न था ..
की अब तो जिद है ये मेरी कसम झूठी निभाएंगे ...

लगा लो हर तजुर्बा ज़िन्दगी हमें गुमनाम रखने की ..
लहर के संग हम साहिल तक उठ उठ के आयेंगे ...

रख निगरानियों में ऐ फलक सितारों को अब अपने ...
किसी दिन खुद पे जो आये ज़मी पे खींच लायेंगे ....

ये बेहोश है दुनिया सियासत भी समझती है ...
किसी दिन होश में आये तो फिर इनको बताएँगे ..

खामखाह ज़िन्दगी की उलझन में पड़ते हो ...
आएगी मौत तो हंस के वहां भी हम ही जायेंगे ...

Tuesday 19 March 2013

फिर न पाओगे ...

बसर कर लूँगा मैं ग़म ऐ महफ़िल ओ बस्ती में ...
मेरे दिल सा महल तुम प्यार का फिर न पाओगे ...

लगा कर ठोकरें निकले हो जिसको रंज कहकर तुम ..
वही फिर लौट आओगे वही फिर सर झुकाओगे ...

वफ़ा की हद तक जायेंगे किसी की बेवफाई पे ...
मोहब्बत ही मोहब्बत है जहाँ नज़रे फिरओगे ..

Wednesday 13 March 2013

कुछ याद दिला दो ....

इन खिलती हुई कलियों को फूल बना दो ...
हर दुआओं को मकबूल बना दो ...
कर सको  कुछ तो इतना सा कर दो ...
याद इंसान को इंसान की भूल दिला दो ...

ये मोहब्बत बस व्यापार है दिल का ...
सूद की तो बात छोडो ...
कर सको  कुछ तो इतना सा कर दो ...
मुझे बस मेरा मूल दिला दो ...

कुछ बना रहे हैं गुनाहों के ढेर पे सपनो का महल ...
जाना एक रोज़ उनको भी होगा ...
कर सको  कुछ तो इतना सा कर दो ...
याद दुनिया का उन्हें ये उसूल दिला दो .....

वो आया तो था ...

वो रूठे रूठे ही सही सामने तो था  ..
वो धुँधला ही सही आईना तो था ....

वो मुझसे न सही मेरे अजीजो से सही ...
हाल ए  दिल मेरा उसने पूछा तो था ...

कैसे कहते हो की दूर रह कर आँखों को सुकून है ..
फरेबी ही सही दो चार नज़र उसने देखा तो था ..

वो लिख नहीं पाए उन्हें अल्फाज़ न मिला ..
कोशिश में कागजात लबो पे लगाया तो था ..

वो चैन से सोये पूरी उम्र बेखबर ..
करवटों में एक रात उसने गुज़ारा तो था ...

ये मौसम सा बदलता मिजाज़ है इंसान का ..
किसी बात पे उसने मुझे समझाया तो था ...

मैंने सोच कर गैरों की बातें पीछे नहीं देखा ....
वो तोड़कर लहजा सभी सहमे कदम आया तो था ...

Tuesday 12 March 2013

दुआएं भी असर करती है ...

इन मौसमों से इतनी नजदीकियां न रखो ...
हल्की सी भी बदले तो सेहत पे असर करती है ....

ये ग़ज़ल है सिर्फ लफ्जों का खेल नहीं ...
सलीके से लिख दे तो दिल पे असर करती है ...

दिल की चोट हल्की हो या गहरी ..
लगती है एक बार तो ताउम्र बसर करती है ....

तुम नादान हो अभी जो डरते रहते हो ...
दिल से जो मांगो तो दुआएं भी असर करती है ...

चेहरा तो दिखाने आया ..............

वो मुझसे मिलने जो आया एक क़र्ज़ था उतारने आया ...
मैं अर्जियां लेकर गया था वो फरमान सुनाने आया ...

मैं सितारों की तरह करता ही रहा  इंतज़ार रात भर ..
वो चाँद जो आया तो आफताब दिखाने आया ...

दीवाना हूँ मैं मानता भी हूँ ...
मैं ज़माने को बताने निकला वो मुझसे ही छुपाने आया ..

ये आग का ही दरिया है कबूल कर ...
जब भी तैरना चाहा ये जलाने आया ...

कैसे कहूँ की आशिकी जन्नत नसीब करती है ..
जब भी करी इबादत तो बस रुलाने आया ...

होगा कोई फरिस्ता जो मोहब्बत में हंस लिए ...
किस्मत के मारे थे हम जब भी आया तो सताने आया ...

फिर भी इसे कहो मोहब्बत की जीत ही ...
जो रुठा हुआ था कब से वो चेहरा तो दिखाने आया ..............

Thursday 7 March 2013

फर्क बस तजुर्बे का है ...

कोई बंज़र में भी कश्ती चला लेता है ...
कोई समंदर में भी कश्ती डूबा देता है ...
फर्क बस तजुर्बे का है मेरे दोस्त ..
कोई अपनों को लुटा देता है कोई अपनों पे लुटा देता है ...
ये खुदाई है इसे आसाँ न समझ ..
कभी रोते को हँसा देता है कभी हँसते को रुला देता है ..
ये ज़माना किसी का न हुआ मेरा भी नहीं होगा ..
ये रात को सूरज भुला देता है दिन में चाँद भुला देता है ..
ये अच्छा ही किया तुमने तुम साथ न चले ...
तुम सह नहीं पाते ये काँटा चुभ चुभ के रुला देता है ..
जाओ वही जाओ तुम सब जहाँ जन्नत सी दुनिया है ..
मुझे भायी नहीं जन्नत दोज़ख का डर रुला देता है ..

सारे अरमान निकल आये ...

यूँ तेरे चेहरे को मैं गौर से देखू तो बेशर्म न कहना ...
न जाने किस सिकन पे मेरी ग़ज़ल निकल आये ..
हर सितारों के पीछे हमने आँख बिछा रखी है ..
न जाने किसके ओट से मेरा चाँद निकल आये ...
ये सांस जब साँसों से मिले तो धडकने थाम कर रखना ...
न जाने किस धड़कन पे मेरी जान निकल आये ..
वो चुप ही रहते हैं महफ़िल में अब अक्सर ..
न जाने कौन से चर्चे में मेरा नाम निकल आये ...
ये इश्क ये मोहब्बत नहीं जानता मैं ..
तुझे देखा तो सारे अरमान निकल आये ...

Wednesday 6 March 2013

इश्क जज्बात की खलिस है...

इश्क जज्बात की खलिस है कदों की नहीं ..
इश्क हद से गुज़रना है कद्र हदों की नहीं ..
ये सियासी चाल हमें मोहरा बना देगी ..
हमें सियासतगर्दों ने बाँटा हैं सरहदों ने नहीं ...
वो उडाते हैं हर बरस एक झुण्ड परिन्दे ..
रंजिशे जो मिटानी है दिल के झरोखे खोल परिन्दों की नहीं ..
इस सराफ़त को कहीं तुम मजबूरी न समझ लेना ..
नरमी सराफ़त की देखी है गर्मी जिदो की नहीं ...
इन सियासतगर्दों से कोई उम्मीद मत रखना ..
जुबां इंसानों की होती है मुरदों की नहीं ...
 ये सियासी चाल हमें मोहरा बना देगी ..
हमें सियासतगर्दों ने बाँटा हैं सरहदों ने नहीं ...

Thursday 28 February 2013

आग का दरिया है डूब के जाना है ...

लोग कहते है तू कैसा दीवाना है ..
बस तू ही तू है कहाँ दिलबर का ठिकाना है ..
वो आ न पाए तो ये उनका फ़साना है ..
मैं तो अब भी खड़ा हूं उस दरिया में ..
जिसे आग का कहते हैं और डूब के जाना है ..
बन जाते अगर मेरे तो निभाते सात जन्मो तक ..
तन्हा ही सब आये हैं तन्हा ही तो जाना है ...
मुझपे एक कतरा भी आंसू कभी जाया न कर देना ...
तुम हंसते हुए आये हो तुम्हे हंसते हुए जाना है ..
मैं तो अब भी खड़ा हु उस दरिया में ..
जिसे आग का कहते हैं और डूब के जाना है ..
कहा किसी से भी नहीं बस जार जार रोये ..
ये मूझसे शुरू हुई मुझपे ही बीत जाना है ...
कसूर किसी का नहीं बस किस्मत की बात है ..
तुम जा नहीं सकते मुझे जिस ओर जाना है ..
शायद ये दुनिया ही वो नहीं जहाँ मेरा ये दिल लगे ...
फुर्सत करो मुझे बहुत दूर तक जाना है ....
मैं तो अब भी खड़ा हूं उस दरिया में ..
जिसे आग का कहते हैं और डूब के जाना है ..

Wednesday 27 February 2013

यूँ ही नहीं होती ...

हम अपनी वफ़ा गर अपनी दहलीज तक रखते ..
तो दहलीज के बाहर कभी इज्ज़त नहीं बिकती ...
मशविरा दे रहे हैं न गुजरो नापाक गलियों से ..
नापाक इन्सा होते हैं कभी गलियां नहीं होती ...
कलंकित कह के सबने आज पत्थर से उसे मारा ..
चुप क्यू है वो जिसने कहा एक हाथ से ताली नहीं बजती ..
करता रहता है रफ़ू अपने ही गुनाहों पे ..
यूँ ही हमें दुनिया गलती का पुतला नहीं कहती ..
कुछ तो जमाना कर रहा बदलाव अपने में ..
यूँ ही हर तरफ ये भीड़ बेकाबू नहीं होती ...

Monday 25 February 2013

बहुत कुछ सहना पड़ता है ..

ज़िन्दगी यूँ ही नहीं कटती बहुत कुछ सहना पड़ता है ..
कभी कुछ सुनना पड़ता है कभी कुछ कहना पड़ता है ..
जानती है हर कली की खिले तो चूस लेगा ये भंवर ....
पर रस्म है जालिम तो उसको खिलना पड़ता है ...
होते परिंदे तो उड़कर काट लेते ज़िन्दगी अपनी ..
हुए हैं आदमी तो पावं जमीं पर रखना पड़ता है ....
ज़िन्दगी यूँ ही नहीं कटती बहुत कुछ सहना पड़ता है ..
कभी कुछ सुनना पड़ता है कभी कुछ कहना पड़ता है।।।।

Friday 22 February 2013

यूँ हर बात पे मुझको छेड़ा न करो ...

यूँ हर बात पे मुझको छेड़ा न करो ...
एक बार उलझ जाऊ सुलझाना मुस्किल होता है ..
तुम्हारा क्या तुम आँखों से खेलने को मोहब्ब्बत कहते हो ...
हमें अपने दिल को बहलाना मुस्किल होता है ....
अँधेरा हो तो चलने में सिर्फ डर ही लगता है ...
मगर दीये के संग जाना मुस्किल होता है ....
ये ख्वाबों में है जन्नत या जन्नत में ख्वाब है ...
जब सामने हो तुम तो कह पाना मुस्किल होता है ....
तुम्ही हो वो रागिनी जिसे मैं गुनगुनाता हूँ ..
जो तुम न हो तो जमाना मुस्किल होता है ....
यूँ हर बात पे मुझको छेड़ा न करो ...
एक बार उलझ जाऊ सुलझाना मुस्किल होता है।।।।।

Friday 1 February 2013

वो ज़िन्दगी को हमसे कहीं बेहतर समझते हैं ..

वो दुनिया को हमसे कहीं बेहतर समझते हैं ...
तभी अब नाम मेरा अपनी जुबां से दूर रखते हैं ...
वो ज़िन्दगी को हमसे कहीं बेहतर समझते हैं ..
हम तो आज भी इस ज़िन्दगी को उलझन ही कहते हैं ।।
सुना है आ गया है रास दुनिया को मेरा कहना ..
चलो कुछ उनकी सुनते हैं कहीं कुछ हम भी कहते हैं ..
सुना है भूल कर वादे वो अब सुलझे से रहते हैं ...
हम तो आज भी इस ज़िन्दगी को उलझन ही कहते हैं ।।
दौड़ता है जो रग रग में उसे बस खून न कहना ..
तुम्हारे याद के टुकड़े मेरे नस नस में बहते हैं ..
वो साँसों को हमसे कहीं बेहतर समझते हैं ..
जहाँ पे ले मेरी खुशबू वहीँ रास्ता बदलते हैं ।।
वो ज़िन्दगी को हमसे कहीं बेहतर समझते हैं ..
हम तो आज भी इस ज़िन्दगी को उलझन ही कहते हैं ।।

Monday 14 January 2013

उगते सूरज से लेकर डूबता सुनहला चाँद ...

उगते सूरज से लेकर
डूबता सुनहला चाँद
जब तक रहते है ये दोनों
तुम्हारी याद आती है।
कोई वक़्त ढूढ़ता हूँ इन दोनों के बीच का ..
जब कभी यादों के साए से दूर रहू ..
शाम ढल जाती है सोचते सोचते
और फिर वही चमकता सूरज और
सुनहले चाँद की कहानी लौट आती है।
उगते सूरज से लेकर
डूबता सुनहला चाँद
जब तक रहते है ये दोनों
तुम्हारी याद आती है।
झगड़ता देखता हु
दो चीरेया ..
न जाने प्यार से या तकरार से ..
मन ही मन कोसता हु खुद को
जल जाता हु एक छोटी सी जान से ..
इसलिए की
कम से कम साथ तो है अपने प्यार के ..
फिर कभी जो राह पे
अकेले चलने की हिम्मत करता हु
लाख मना करने पे भी ..
याद का क्या है ..
साथ चलने आ ही जाती है ..
उगते सूरज से लेकर
डूबता सुनहला चाँद
जब तक रहते है ये दोनों
तुम्हरी याद आती है।
न जाने किस तरह का तर्क है ये प्यार ..
कभी मेरे समझ में आ नहीं पाती .
बुरा एक बार भी जो मैं
तेरे लिए सोच पाता ..
प्यार का नाम इसे देता नहीं।
सुबह की पहली साँस
जो नींद खुलने पे लेता हु
रात की पहली साँस जो ..
ख्वाब में जाने से पहले लेता हु ..
हर साँस पे ..
बेचैन कर जाती है ..
और हरपल तुम्हारी याद आती है ..
उगते सूरज से लेकर
डूबता सुनहला चाँद
जब तक रहते है ये दोनों
तुम्हारी  याद आती है।

न गुजरे बहुत बस कुछ साल ऐसा हो ....

 न गुजरे बहुत बस कुछ साल ऐसा हो ....
की जैसा हाल मेरा है  तेरा भी हाल वैसा हो ...
छोड़ो की जिद थी हमें जिंदगी भर साथ रहने की ..
मिले वो नींद में आकर मेरा हर ख्वाब ऐसा हो ...
चाहे जान से ज्यादा मिले कोई उसे ऐसा ....
मगर ताउम्र वो तरसें मेरा प्यार ऐसा हो ....

न गुजरे बहुत बस कुछ साल ऐसा हो ....
की जैसा हाल मेरा है  तेरा भी हाल वैसा हो ...

वो कहते हैं की वो बेअसर हैं खयालातों से अपने ...
जी ले फिर से वो मुझको कुछ कमाल ऐसा हो ...
लोग बच कर चलते हैं कहीं फंस न जाये जालों में ..
उम्र भर कैद रह जाऊ अगर जुल्फों का जाल तुमसा हो ....

न गुजरे बहुत बस कुछ साल ऐसा हो ....
की जैसा हाल मेरा है  तेरा भी हाल वैसा हो ...

Wednesday 9 January 2013

ऐ बारिश तू खुद पे न इल्जाम ले ..


बारिश तू खुद पे इल्जाम ले ..
थी कागज़ की कश्ती जो चल सकी ...
सारी  कोशिश की लौ ने दिए को जला दे ..
वो बारिश से भीगी थी जल सकी ।।
लाख कोशिश की हमने की वो भी कुछ बोले ..
वो पत्थर की मूरत थी कह सकी ....
लाख कह ले गलत वो मुझको हम उनको .....
दास्ताँ थी मोहब्बत की रुक सकी ...
लोग कहते रहे मोड़ लो अपना रस्ता ....
इतनी सीधी थी सीरत की मुड़  सकी ...
जाने किया कितने लोगो ने रुसवा ..
इतनी बेबस थी वो की रो सकी ...
बारिश तू खुद पे इल्जाम ले ..
थी कागज़ की कश्ती जो चल सकी ...

कहते हैं सब

कहते हैं सब युवा ही अब प्रभात लायेंगे   ...
कब ? जब सर्व नाश हो जायेंगे ...
कहा किसी ने हमने दी है उनको सत्ता, शीश उतार भी लायेंगे  ..
कब ? जब भूखे कुत्ते नोच नोच कर हाथ काट ले जायेंगे ...
वो सत्ताधारी चीरहरण पर भी राजनीती कर जायेंगे ..
अपनी अमृत सी सुधा रस वाणी से पीडिता को गलत बताएँगे ...
पर इतने पर भी हमने अपना संयम न खोया है ...
हम अगली बार भी उनको ही सत्ता पर फिर से सजायेंगे ...
फिर हाय हाय कर पांच साल नव उपवास मनाएंगे ...
कब ? जब फिर से यही सत्ताधारी दिल्ली में रास मनाएंगे ...