कहने को अब न वो मेरा न मैं उसका ...
पर छुप छुप के वो मेरे अह्सार चुरा जाता है ...
मतला तक तो मैं भी नहीं सोचता तेरे बारे में ...
मकता में न जाने क्यूँ तेरा ही नाम लिखा जाता है ..
दिल कहता है नज़रे चुराकर तू भी गुनाह कर ले ...
वो जगह नहीं मिली जहाँ तू नज़र ना आता है ...
"मुसाहिब" की बातें है सुनकर गौर न किया ,,,,
बात अगर अच्छी हो तो ओहदा नहीं देखा जाता है ..
पर छुप छुप के वो मेरे अह्सार चुरा जाता है ...
मतला तक तो मैं भी नहीं सोचता तेरे बारे में ...
मकता में न जाने क्यूँ तेरा ही नाम लिखा जाता है ..
दिल कहता है नज़रे चुराकर तू भी गुनाह कर ले ...
वो जगह नहीं मिली जहाँ तू नज़र ना आता है ...
"मुसाहिब" की बातें है सुनकर गौर न किया ,,,,
बात अगर अच्छी हो तो ओहदा नहीं देखा जाता है ..
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