Monday 14 January 2013

उगते सूरज से लेकर डूबता सुनहला चाँद ...

उगते सूरज से लेकर
डूबता सुनहला चाँद
जब तक रहते है ये दोनों
तुम्हारी याद आती है।
कोई वक़्त ढूढ़ता हूँ इन दोनों के बीच का ..
जब कभी यादों के साए से दूर रहू ..
शाम ढल जाती है सोचते सोचते
और फिर वही चमकता सूरज और
सुनहले चाँद की कहानी लौट आती है।
उगते सूरज से लेकर
डूबता सुनहला चाँद
जब तक रहते है ये दोनों
तुम्हारी याद आती है।
झगड़ता देखता हु
दो चीरेया ..
न जाने प्यार से या तकरार से ..
मन ही मन कोसता हु खुद को
जल जाता हु एक छोटी सी जान से ..
इसलिए की
कम से कम साथ तो है अपने प्यार के ..
फिर कभी जो राह पे
अकेले चलने की हिम्मत करता हु
लाख मना करने पे भी ..
याद का क्या है ..
साथ चलने आ ही जाती है ..
उगते सूरज से लेकर
डूबता सुनहला चाँद
जब तक रहते है ये दोनों
तुम्हरी याद आती है।
न जाने किस तरह का तर्क है ये प्यार ..
कभी मेरे समझ में आ नहीं पाती .
बुरा एक बार भी जो मैं
तेरे लिए सोच पाता ..
प्यार का नाम इसे देता नहीं।
सुबह की पहली साँस
जो नींद खुलने पे लेता हु
रात की पहली साँस जो ..
ख्वाब में जाने से पहले लेता हु ..
हर साँस पे ..
बेचैन कर जाती है ..
और हरपल तुम्हारी याद आती है ..
उगते सूरज से लेकर
डूबता सुनहला चाँद
जब तक रहते है ये दोनों
तुम्हारी  याद आती है।

न गुजरे बहुत बस कुछ साल ऐसा हो ....

 न गुजरे बहुत बस कुछ साल ऐसा हो ....
की जैसा हाल मेरा है  तेरा भी हाल वैसा हो ...
छोड़ो की जिद थी हमें जिंदगी भर साथ रहने की ..
मिले वो नींद में आकर मेरा हर ख्वाब ऐसा हो ...
चाहे जान से ज्यादा मिले कोई उसे ऐसा ....
मगर ताउम्र वो तरसें मेरा प्यार ऐसा हो ....

न गुजरे बहुत बस कुछ साल ऐसा हो ....
की जैसा हाल मेरा है  तेरा भी हाल वैसा हो ...

वो कहते हैं की वो बेअसर हैं खयालातों से अपने ...
जी ले फिर से वो मुझको कुछ कमाल ऐसा हो ...
लोग बच कर चलते हैं कहीं फंस न जाये जालों में ..
उम्र भर कैद रह जाऊ अगर जुल्फों का जाल तुमसा हो ....

न गुजरे बहुत बस कुछ साल ऐसा हो ....
की जैसा हाल मेरा है  तेरा भी हाल वैसा हो ...

Wednesday 9 January 2013

ऐ बारिश तू खुद पे न इल्जाम ले ..


बारिश तू खुद पे इल्जाम ले ..
थी कागज़ की कश्ती जो चल सकी ...
सारी  कोशिश की लौ ने दिए को जला दे ..
वो बारिश से भीगी थी जल सकी ।।
लाख कोशिश की हमने की वो भी कुछ बोले ..
वो पत्थर की मूरत थी कह सकी ....
लाख कह ले गलत वो मुझको हम उनको .....
दास्ताँ थी मोहब्बत की रुक सकी ...
लोग कहते रहे मोड़ लो अपना रस्ता ....
इतनी सीधी थी सीरत की मुड़  सकी ...
जाने किया कितने लोगो ने रुसवा ..
इतनी बेबस थी वो की रो सकी ...
बारिश तू खुद पे इल्जाम ले ..
थी कागज़ की कश्ती जो चल सकी ...

कहते हैं सब

कहते हैं सब युवा ही अब प्रभात लायेंगे   ...
कब ? जब सर्व नाश हो जायेंगे ...
कहा किसी ने हमने दी है उनको सत्ता, शीश उतार भी लायेंगे  ..
कब ? जब भूखे कुत्ते नोच नोच कर हाथ काट ले जायेंगे ...
वो सत्ताधारी चीरहरण पर भी राजनीती कर जायेंगे ..
अपनी अमृत सी सुधा रस वाणी से पीडिता को गलत बताएँगे ...
पर इतने पर भी हमने अपना संयम न खोया है ...
हम अगली बार भी उनको ही सत्ता पर फिर से सजायेंगे ...
फिर हाय हाय कर पांच साल नव उपवास मनाएंगे ...
कब ? जब फिर से यही सत्ताधारी दिल्ली में रास मनाएंगे ...