इस भीड़ में तेरे बिना हु माँ बहुत बेबस,
की तेरा हाथ हो सिर पे तो धरती जन्नत लगती है,
खफा होगा खुदा मुझसे तभी मैं दूर हु तुमसे,
की सिर पे आँचल की छाया बड़ी सिद्दत से मिलती है ।
माँ तू ही है ऐसी दुआ हर पल जो करती है,
तेरी हर दुआ पे माँ मेरी ये उम्र बढती है,
ज़माने भर की है मुझमें बुराई जानती है माँ
मगर सबको मुझे अपना दुलारा रोज कहती है |
खफा कितनी भी हो माँ तू,
फिकर उतनी ही करती है,
खुदा की जन्नत से प्यारी भी,
माँ की गोद लगती है ।
जो तकिये पर मैं लिख दू माँ ऊँगली से,
ये पूरी रात मुझको दूर बुरे ख्वाबों से रखती है,
करूँ अल्फाज़ में इसको बयां ये है बड़ी मुश्किल,
वो मुझको देखकर आता कभी हंसती है रोती है ।
एक छींक पर सौ साल जीने की दुआ करती,
मेरी तबियत बिगड़ने पर खुदा से भी वो लडती है,
शायद उसे जन्नत खुदा है इसलिए कहता,
वहां पर हर किसी के सिर पे छाया माँ की रहती है ।
इस भीड़ में तेरे सहारे मैं माँ बढ़ा हरदम
की तेरी दुआ मिलती रहे फ़तेह फिर रोज होती है,
खफा होगा खुदा मुझसे तभी मैं दूर हु तुमसे,
की किस्मत में तेरी ममता बड़ी सिद्दत से होती है ।