फिर वही है खार लौटा बाग़-ए- हिन्दोस्तान में,
अब वही काफ़िर हुए शामिल थे जो निगेहबान में,
खाक-ए-वतन अब कह रहा जान फंस रही बियाबान में,
है कोई अशफाक ऐसा जो लौटा दे आज़ादी हिन्द के शान में।
उल्फत में है
हिन्द-ए-वतन
शूली पर सुपुर्द-ए-जान है,
है कोई बेबाक
ऐसा हिन्द जिसकी
आरज़ू और हिन्द
जिसकी जान है,
फिर वही है
अश्क लौटा नूर-ए-हिन्दोस्तान में,
अब वही नासूर
है शामिल थे
जो रुस्तम-ए-ईमान में,
तख़्त-ए-वतन
खतरे में है
हाथ बढ़ रहा
गिरेबान में,
है कोई बिस्मिल कही
लौटा दे जो
आजादी हिन्द के
शान में ।
फिर वही है खार लौटा बाग़-ए- हिन्दोस्तान में |
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