इस दौर में आगे बढ़ना जो चाहो,
तो आदमीं बनना पड़ेगा,
हर मोड़ पे झूठे खड़े हैं, झूठ तो कहना पड़ेगा,
तो आदमी बनना पड़ेगा ।
फक्र करना सीख लो अपने फरेबों पर जरा,
अब कहाँ लौटेगा गाँधी जो तू रहा नजरें चुरा,
छोड़ दे तू सोचना क्या सही है क्या गलत,
इस दौर में टिकना जो चाहो तो तुम्हे ठगना पड़ेगा,
तो आदमी बनना पड़ेगा ।
रुक नहीं सच नहीं तो क्या हुआ झूठ की तो राह है,
आपनी खुशियाँ देख ले क्या हुआ गर दूसरों की आह है,
तेरी किसी को है नहीं क्यों तुझे दूसरों की परवाह है,
सच रो रहा बेबस कहीं, अब झूठ की ही वाह है,
इस भीड़ में दिखना जो चाहो तो बहरूपिया बनना पड़ेगा,
तो आदमी बनना पड़ेगा।
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