Tuesday 20 November 2012

जरुरत है ही क्या


जरुरत है ही क्या दिवार --दरारों को सरेआम करने की,
की हर कोने में साजिश है तुझे बदनाम करने की,
अभी अपना जिन्हें  कह लो वो बैठे हैं फिराको में,
चलेंगे चाल मौके पे तुझे गुमनाम करने की

बहुत रोया था मैं भी किसी को याद कर कर के रातों में,
ये रंजिश थी मुझे बाज़ार में नीलाम करने की,
वो कहते है मिलो मुझसे बस दिन के उजालो में,
मेरी बस थी तमन्ना साथ में एक शाम करने की।

सोच कर उल्फत की बातें मेरे काफ़िर रहे जिंदा ,
ख्वाइश मौत से पहले है अपनी हर पल नाम करने की,
ये दुनिया मैंने भी कल परसों ही छोड़ी है,
की फुर्सत अब मिली है मुझे आराम करने की

जरुरत है ही क्या अब वक़्त को बर्बाद करने की,
शुरू करते है कब्र में रियाजें एहतराम करने की,
बहुत करते थे शिकायत वो मुझसे मिलने पर,
याद आएगी हुनर अपनी वो हर एक काम  करने की

जरुरत है ही क्या दिवार --दरारों को सरेआम करने की,
की हर कोने में साजिश है तुझे बदनाम करने की |

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