Sunday 31 March 2013

बस तुम बेवफा नहीं होते ...

पूछते हो मौत से पहले ख्वाइश आखिरी ...
रस्म ज़िन्दगी से पहले की होती तो ज़िन्दगी नहीं लेते ...

कौन चाहता है मोहब्बत दूसरी बार हो ...
ख्वाइश थी ज़िन्दगी लुटाने की बस तुम बेवफा नहीं होते ...

"मुसाहिब" हूँ तो हर फैसला सर आँखों पे है तेरा ...
सितम किस पे तुम ढाते अगर हम ही नहीं होते ....

Saturday 30 March 2013

बस्तियां जलीं होगी ...

यूँ ही रोता नहीं है आसमां जार जार होकर ...
फिर किसी आशिक को बेवफाई मिली होगी ...

अब जो शहर में उठता है धुआं वो चूल्हे का नहीं है ...
फिर सियासत की आग में बस्तियां जलीं होगी ...

ऐ बागबां अब तो बाज़ आ बेचने से इन्हें ..
ये कलियाँ तो नादान है कल फिर से खिली होगी ...

"मुसाहिब" तो है एक मोहरा शतरंज-ऐ -हुकूमत का ..
ये बहकी जो चाल है, गैरों ने चली होगी ...

तसव्वुर में यार के ..

नज़रें चुराते आये हो फलक -ऐ - पीर से ..
उस से छुपाऊ क्या जिसे सबकुछ पता रहे ....

गुजरी है ज़िन्दगी तसव्वुर में यार के ..
जीनत कहोगे उनको जो तुमको सता रहे ...

करते रहे इबादत ताउम्र यार के ...
अब जाने को हुए हम तो मोहब्बत जता रहे ...

खुद ही सूना ले अपनी दास्ताँ -ऐ -दर्द की ...
कोई नहीं सुनेगा तुम किसको बता रहे ...

"मुसाहिब" का दर्द है शाहों तक न जायेगा ...
हम अपनी कहानी खुद ही सबको सुना रहे ...

Monday 25 March 2013

कसम तोड़ी न जाएगी ..

ये अश्कों का खेल है इसे ज्यादा न समझ ....
हर रात जाग कर फ़िर काटी न जायेगी ....

हम शरीफों में आते हैं शराफत से रहने दो ..
गुस्ताखियों पे आये तो झेली न जायेगी ....

वो और था ज़माना जब होते थे सुखनवर ..
मिलावट की खाओगे बू लिखावट से आएगी ...

बस पल दो पल की खातिर अपना कहें तुम्हे ..
ये रिश्तों के खेल हमसे खेली न जाएगी ...

तुम ही रखो हुकूमत फरेबों के नाम पे ..
खा ली कसम जो हमने फ़िर तोड़ी न जाएगी ....

ये अश्कों का खेल है इसे ज्यादा न समझ ....
हर रात जाग कर फ़िर काटी न जायेगी ....

भाई सा मिठास चाहिए ...

ये दुनिया काफिरों से इतनी भर गयी है ...
ऐ खुदा तेरे होने का एहसास चाहिए ...

ये  मासूम आँखें खौफ़ से कितनी सहमी सी लग रही हैं ...
ऐ खुदा इन आँखों में फिर से तेरी तलाश चाहिए ...

हो तो ज़ाऊ मैं भी फना दरिया ऐ इश्क में ..
हाथ तुम थाम लोगे तेरा विशवास चाहिए ...

माना की तुम  ज़माने के चश्म ऒ चिराग हो ...
पर कोई ऐसा मिले जो ताउम्र दिल के आस पास चाहिए ..

मिटा दो ये मजहबी कड़वाहटें मेरे वतन से ऐ खुदा ..
हर शख्स में भाई भाई सा मिठास चाहिए ...

ये दुनिया काफिरों से इतनी भर गयी है ...
ऐ खुदा तेरे होने का एहसास चाहिए ...

Sunday 24 March 2013

मोहब्बत तो हो जाने दो .....

ये जो सफ़ेद चेहरे में फिरते है ...
सराफ़त देखना ये रात ढल जाने दो .....

आज सबको अपना जो कहते हो ...
फ़ितरत देखना सियासत में आ जाने दो ...

अभी पल भर भी हाथ छोड़ते नहीं हम दोनों ....
दूरियां देखना क़यामत तो आ जाने दो,,,,

कैद हूँ पिंजड़े में कैसे तुम्हे दिखाऊ ,,,,
उडाने देखना रिहायत तो आ जाने दो ....

कितना तजुर्बा है हम भी देखेंगे ....
ज़िन्दगी एक बार गफ़लत में आ जाने दो ...

फिर देखेंगे की कितने हैं हम भी तुम्हे प्यारे ....
हाथ उनके हुकूमत तो आ जाने दो ...

इबादत और पूजा साथ में मिलकर करेंगे हम ...
कहोगे सच ही कहता था मोहब्बत तो हो जाने दो .....

Wednesday 20 March 2013

कसम झूठी निभाएंगे ...

कसम खाए थे सब झूठे हमें मालूम भी न था ..
की अब तो जिद है ये मेरी कसम झूठी निभाएंगे ...

लगा लो हर तजुर्बा ज़िन्दगी हमें गुमनाम रखने की ..
लहर के संग हम साहिल तक उठ उठ के आयेंगे ...

रख निगरानियों में ऐ फलक सितारों को अब अपने ...
किसी दिन खुद पे जो आये ज़मी पे खींच लायेंगे ....

ये बेहोश है दुनिया सियासत भी समझती है ...
किसी दिन होश में आये तो फिर इनको बताएँगे ..

खामखाह ज़िन्दगी की उलझन में पड़ते हो ...
आएगी मौत तो हंस के वहां भी हम ही जायेंगे ...

Tuesday 19 March 2013

फिर न पाओगे ...

बसर कर लूँगा मैं ग़म ऐ महफ़िल ओ बस्ती में ...
मेरे दिल सा महल तुम प्यार का फिर न पाओगे ...

लगा कर ठोकरें निकले हो जिसको रंज कहकर तुम ..
वही फिर लौट आओगे वही फिर सर झुकाओगे ...

वफ़ा की हद तक जायेंगे किसी की बेवफाई पे ...
मोहब्बत ही मोहब्बत है जहाँ नज़रे फिरओगे ..

Wednesday 13 March 2013

कुछ याद दिला दो ....

इन खिलती हुई कलियों को फूल बना दो ...
हर दुआओं को मकबूल बना दो ...
कर सको  कुछ तो इतना सा कर दो ...
याद इंसान को इंसान की भूल दिला दो ...

ये मोहब्बत बस व्यापार है दिल का ...
सूद की तो बात छोडो ...
कर सको  कुछ तो इतना सा कर दो ...
मुझे बस मेरा मूल दिला दो ...

कुछ बना रहे हैं गुनाहों के ढेर पे सपनो का महल ...
जाना एक रोज़ उनको भी होगा ...
कर सको  कुछ तो इतना सा कर दो ...
याद दुनिया का उन्हें ये उसूल दिला दो .....

वो आया तो था ...

वो रूठे रूठे ही सही सामने तो था  ..
वो धुँधला ही सही आईना तो था ....

वो मुझसे न सही मेरे अजीजो से सही ...
हाल ए  दिल मेरा उसने पूछा तो था ...

कैसे कहते हो की दूर रह कर आँखों को सुकून है ..
फरेबी ही सही दो चार नज़र उसने देखा तो था ..

वो लिख नहीं पाए उन्हें अल्फाज़ न मिला ..
कोशिश में कागजात लबो पे लगाया तो था ..

वो चैन से सोये पूरी उम्र बेखबर ..
करवटों में एक रात उसने गुज़ारा तो था ...

ये मौसम सा बदलता मिजाज़ है इंसान का ..
किसी बात पे उसने मुझे समझाया तो था ...

मैंने सोच कर गैरों की बातें पीछे नहीं देखा ....
वो तोड़कर लहजा सभी सहमे कदम आया तो था ...

Tuesday 12 March 2013

दुआएं भी असर करती है ...

इन मौसमों से इतनी नजदीकियां न रखो ...
हल्की सी भी बदले तो सेहत पे असर करती है ....

ये ग़ज़ल है सिर्फ लफ्जों का खेल नहीं ...
सलीके से लिख दे तो दिल पे असर करती है ...

दिल की चोट हल्की हो या गहरी ..
लगती है एक बार तो ताउम्र बसर करती है ....

तुम नादान हो अभी जो डरते रहते हो ...
दिल से जो मांगो तो दुआएं भी असर करती है ...

चेहरा तो दिखाने आया ..............

वो मुझसे मिलने जो आया एक क़र्ज़ था उतारने आया ...
मैं अर्जियां लेकर गया था वो फरमान सुनाने आया ...

मैं सितारों की तरह करता ही रहा  इंतज़ार रात भर ..
वो चाँद जो आया तो आफताब दिखाने आया ...

दीवाना हूँ मैं मानता भी हूँ ...
मैं ज़माने को बताने निकला वो मुझसे ही छुपाने आया ..

ये आग का ही दरिया है कबूल कर ...
जब भी तैरना चाहा ये जलाने आया ...

कैसे कहूँ की आशिकी जन्नत नसीब करती है ..
जब भी करी इबादत तो बस रुलाने आया ...

होगा कोई फरिस्ता जो मोहब्बत में हंस लिए ...
किस्मत के मारे थे हम जब भी आया तो सताने आया ...

फिर भी इसे कहो मोहब्बत की जीत ही ...
जो रुठा हुआ था कब से वो चेहरा तो दिखाने आया ..............

Thursday 7 March 2013

फर्क बस तजुर्बे का है ...

कोई बंज़र में भी कश्ती चला लेता है ...
कोई समंदर में भी कश्ती डूबा देता है ...
फर्क बस तजुर्बे का है मेरे दोस्त ..
कोई अपनों को लुटा देता है कोई अपनों पे लुटा देता है ...
ये खुदाई है इसे आसाँ न समझ ..
कभी रोते को हँसा देता है कभी हँसते को रुला देता है ..
ये ज़माना किसी का न हुआ मेरा भी नहीं होगा ..
ये रात को सूरज भुला देता है दिन में चाँद भुला देता है ..
ये अच्छा ही किया तुमने तुम साथ न चले ...
तुम सह नहीं पाते ये काँटा चुभ चुभ के रुला देता है ..
जाओ वही जाओ तुम सब जहाँ जन्नत सी दुनिया है ..
मुझे भायी नहीं जन्नत दोज़ख का डर रुला देता है ..

सारे अरमान निकल आये ...

यूँ तेरे चेहरे को मैं गौर से देखू तो बेशर्म न कहना ...
न जाने किस सिकन पे मेरी ग़ज़ल निकल आये ..
हर सितारों के पीछे हमने आँख बिछा रखी है ..
न जाने किसके ओट से मेरा चाँद निकल आये ...
ये सांस जब साँसों से मिले तो धडकने थाम कर रखना ...
न जाने किस धड़कन पे मेरी जान निकल आये ..
वो चुप ही रहते हैं महफ़िल में अब अक्सर ..
न जाने कौन से चर्चे में मेरा नाम निकल आये ...
ये इश्क ये मोहब्बत नहीं जानता मैं ..
तुझे देखा तो सारे अरमान निकल आये ...

Wednesday 6 March 2013

इश्क जज्बात की खलिस है...

इश्क जज्बात की खलिस है कदों की नहीं ..
इश्क हद से गुज़रना है कद्र हदों की नहीं ..
ये सियासी चाल हमें मोहरा बना देगी ..
हमें सियासतगर्दों ने बाँटा हैं सरहदों ने नहीं ...
वो उडाते हैं हर बरस एक झुण्ड परिन्दे ..
रंजिशे जो मिटानी है दिल के झरोखे खोल परिन्दों की नहीं ..
इस सराफ़त को कहीं तुम मजबूरी न समझ लेना ..
नरमी सराफ़त की देखी है गर्मी जिदो की नहीं ...
इन सियासतगर्दों से कोई उम्मीद मत रखना ..
जुबां इंसानों की होती है मुरदों की नहीं ...
 ये सियासी चाल हमें मोहरा बना देगी ..
हमें सियासतगर्दों ने बाँटा हैं सरहदों ने नहीं ...