Monday 25 March 2013

कसम तोड़ी न जाएगी ..

ये अश्कों का खेल है इसे ज्यादा न समझ ....
हर रात जाग कर फ़िर काटी न जायेगी ....

हम शरीफों में आते हैं शराफत से रहने दो ..
गुस्ताखियों पे आये तो झेली न जायेगी ....

वो और था ज़माना जब होते थे सुखनवर ..
मिलावट की खाओगे बू लिखावट से आएगी ...

बस पल दो पल की खातिर अपना कहें तुम्हे ..
ये रिश्तों के खेल हमसे खेली न जाएगी ...

तुम ही रखो हुकूमत फरेबों के नाम पे ..
खा ली कसम जो हमने फ़िर तोड़ी न जाएगी ....

ये अश्कों का खेल है इसे ज्यादा न समझ ....
हर रात जाग कर फ़िर काटी न जायेगी ....

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