Saturday, 30 March 2013

तसव्वुर में यार के ..

नज़रें चुराते आये हो फलक -ऐ - पीर से ..
उस से छुपाऊ क्या जिसे सबकुछ पता रहे ....

गुजरी है ज़िन्दगी तसव्वुर में यार के ..
जीनत कहोगे उनको जो तुमको सता रहे ...

करते रहे इबादत ताउम्र यार के ...
अब जाने को हुए हम तो मोहब्बत जता रहे ...

खुद ही सूना ले अपनी दास्ताँ -ऐ -दर्द की ...
कोई नहीं सुनेगा तुम किसको बता रहे ...

"मुसाहिब" का दर्द है शाहों तक न जायेगा ...
हम अपनी कहानी खुद ही सबको सुना रहे ...

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