Wednesday 6 March 2013

इश्क जज्बात की खलिस है...

इश्क जज्बात की खलिस है कदों की नहीं ..
इश्क हद से गुज़रना है कद्र हदों की नहीं ..
ये सियासी चाल हमें मोहरा बना देगी ..
हमें सियासतगर्दों ने बाँटा हैं सरहदों ने नहीं ...
वो उडाते हैं हर बरस एक झुण्ड परिन्दे ..
रंजिशे जो मिटानी है दिल के झरोखे खोल परिन्दों की नहीं ..
इस सराफ़त को कहीं तुम मजबूरी न समझ लेना ..
नरमी सराफ़त की देखी है गर्मी जिदो की नहीं ...
इन सियासतगर्दों से कोई उम्मीद मत रखना ..
जुबां इंसानों की होती है मुरदों की नहीं ...
 ये सियासी चाल हमें मोहरा बना देगी ..
हमें सियासतगर्दों ने बाँटा हैं सरहदों ने नहीं ...

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