Sunday 31 March 2013

बस तुम बेवफा नहीं होते ...

पूछते हो मौत से पहले ख्वाइश आखिरी ...
रस्म ज़िन्दगी से पहले की होती तो ज़िन्दगी नहीं लेते ...

कौन चाहता है मोहब्बत दूसरी बार हो ...
ख्वाइश थी ज़िन्दगी लुटाने की बस तुम बेवफा नहीं होते ...

"मुसाहिब" हूँ तो हर फैसला सर आँखों पे है तेरा ...
सितम किस पे तुम ढाते अगर हम ही नहीं होते ....

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