Wednesday 9 January 2013

ऐ बारिश तू खुद पे न इल्जाम ले ..


बारिश तू खुद पे इल्जाम ले ..
थी कागज़ की कश्ती जो चल सकी ...
सारी  कोशिश की लौ ने दिए को जला दे ..
वो बारिश से भीगी थी जल सकी ।।
लाख कोशिश की हमने की वो भी कुछ बोले ..
वो पत्थर की मूरत थी कह सकी ....
लाख कह ले गलत वो मुझको हम उनको .....
दास्ताँ थी मोहब्बत की रुक सकी ...
लोग कहते रहे मोड़ लो अपना रस्ता ....
इतनी सीधी थी सीरत की मुड़  सकी ...
जाने किया कितने लोगो ने रुसवा ..
इतनी बेबस थी वो की रो सकी ...
बारिश तू खुद पे इल्जाम ले ..
थी कागज़ की कश्ती जो चल सकी ...

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