ऐ बारिश तू खुद
पे न इल्जाम
ले ..
थी कागज़ की कश्ती जो चल न सकी ...
सारी कोशिश की लौ ने दिए को जला दे ..
वो बारिश से भीगी थी जल न सकी ।।
लाख कोशिश की हमने की वो भी कुछ बोले ..
वो पत्थर की मूरत थी कह न सकी ....
लाख कह ले गलत वो मुझको हम उनको .....
दास्ताँ थी मोहब्बत की रुक न सकी ...
लोग कहते रहे मोड़ लो अपना रस्ता ....
इतनी सीधी थी सीरत की मुड़ न सकी ...
न जाने किया कितने लोगो ने रुसवा ..
इतनी बेबस थी वो की रो न सकी ...
थी कागज़ की कश्ती जो चल न सकी ...
सारी कोशिश की लौ ने दिए को जला दे ..
वो बारिश से भीगी थी जल न सकी ।।
लाख कोशिश की हमने की वो भी कुछ बोले ..
वो पत्थर की मूरत थी कह न सकी ....
लाख कह ले गलत वो मुझको हम उनको .....
दास्ताँ थी मोहब्बत की रुक न सकी ...
लोग कहते रहे मोड़ लो अपना रस्ता ....
इतनी सीधी थी सीरत की मुड़ न सकी ...
न जाने किया कितने लोगो ने रुसवा ..
इतनी बेबस थी वो की रो न सकी ...
ऐ बारिश तू खुद
पे न इल्जाम
ले ..
थी कागज़ की कश्ती जो चल न सकी ...
थी कागज़ की कश्ती जो चल न सकी ...
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