सबने सोचा की इसपे भी पहरा लगायें ...
चलो इसके भी सिर पे अब सहरा लगायें ...
रंगों में भी अब मिलावट है इतनी ..
कहाँ मिल रहा वो जो गहरा लगायें ...
रख सके न हिफाज़त से साँसों को हम तो ...
तेरे हुस्न पे क्या हम पहरा लगायें ....
पूछा जो मैंने सियासत सिखा दे ..
कहा चेहरे पे पहले चेहरा लगायें ...
घर से निकलने को है अब "मुसाहिब"..
फिजाओं ने सोचा की कोहरा लगायें ...
चलो इसके भी सिर पे अब सहरा लगायें ...
रंगों में भी अब मिलावट है इतनी ..
कहाँ मिल रहा वो जो गहरा लगायें ...
रख सके न हिफाज़त से साँसों को हम तो ...
तेरे हुस्न पे क्या हम पहरा लगायें ....
पूछा जो मैंने सियासत सिखा दे ..
कहा चेहरे पे पहले चेहरा लगायें ...
घर से निकलने को है अब "मुसाहिब"..
फिजाओं ने सोचा की कोहरा लगायें ...
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