Friday 5 April 2013

उसने मुड़कर ना देखा ...

इस सितमगर ज़माने में क्या कुछ ना देखा ..
आरज़ू थी वफा की वफ़ा ही ना देखा ..

वो कह कर गए कोई बेहतर मिलेगा ...
कभी कोई फिर उनके जैसा ना देखा ...

कहा था किसी ने लुटा दो ये हस्ती ..
बात जिसकी भी मानी फिर उसी को ना देखा ..

इतना दर्द -ऐ- जुबां है "मुसाहिब" ही होगा ...
सोचकर बस यही उसने मुड़कर ना देखा ...

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