Thursday, 25 April 2013

नयी ग़ज़ल आने वाली है ..

जो काफिरों की फिर नयी नसल आने वाली है ..
मुजाहिदों पे भी खुदा की नयी फज़ल आने वाली है ..

यहाँ तुम बैठे रहे इंतज़ार में यूँ ही बेवजह ..
वहां उनके खेतों में नयी फसल आने वाली है ..

आज शाहों को देखा है गरीबों के घर में खाते  ..
लगता है चुनावों की नयी पहल आने वाली है ..

यूँ ही नहीं कोई खून को पसीने में बहा रहा ..
लगता है अमीरों की नयी महल आने वाली है ..

आज दिखा है जी भर के रोते हुए "मुसाहिब"..
दर्द -ऐ-ज़िन्दगी पे नयी ग़ज़ल आने वाली है .. 

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