Wednesday 17 April 2013

करती है धुन परेशां मुझको साज़ से ..

कब तक रुके रहोगे रस्मो रिवाज़ से ..
पास खींच लाउंगा तुझको आवाज़ से ..

एक बार बोल दे जो तुझे वास्ता नहीं ..
ख्वाबों से भी मिटा दूँ तुझको आज से ..

हर सुर कटे हुए हैं हर ताल बेमज़ा ..
करती है धुन परेशां मुझको साज़ से ..

यूँ तो मोहब्बत में दिलबर हुआ खुदा ..
कैसे कहूँ खुदा मैं तुझको नाज़ से ..

वो करते रहे तगाफुल हम पाते रहे सज़ा ..
दुनिया लगे है ग़ाफिल "मुसाहिब" को आज से ..

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