वफ़ा ढूढ़ते तुम भी आये कहाँ ...
हुस्न के खेल में दिल लगाये कहाँ ..
वो दिखा फिर वही छोड़ आये जहाँ ..
वो बैठा था नज़रें गडाये वहां ..
तेरा फ़लसफ़ा कुछ नया भी नही ..
बैठे हैं सब दिल जलाये यहाँ .....
वो नज़रों की बातों के दिन ढल गए ...
नज़र सब फरेबी बनाये यहाँ ..
"मुसाहिब" चलो शाम ढलने लगी है ...
रात बातों में ही कट न जाये यहाँ ...
हुस्न के खेल में दिल लगाये कहाँ ..
वो दिखा फिर वही छोड़ आये जहाँ ..
वो बैठा था नज़रें गडाये वहां ..
तेरा फ़लसफ़ा कुछ नया भी नही ..
बैठे हैं सब दिल जलाये यहाँ .....
वो नज़रों की बातों के दिन ढल गए ...
नज़र सब फरेबी बनाये यहाँ ..
"मुसाहिब" चलो शाम ढलने लगी है ...
रात बातों में ही कट न जाये यहाँ ...
No comments:
Post a Comment