Monday 8 April 2013

गिरते गिरते संभलना सीख लेगा ..

वो खुद ही संभलकर चलना सीख लेगा ..
देखना गिरते गिरते संभलना सीख लेगा ..

यूँ ऊँगली पकड़ के क्या चलना सिखाना ..
छोड़ दो इस शहर में वो चलना सीख लेगा ..

जलने दो थोडा अगन में उसे भी ..
शमा की जलन में वो जलना सीख लेगा ..

बनाने दो तिनकों का एक घर उसे भी ..
वो खुद ही आशियाँ बदलना सीख लेगा ...

गाने दो जी भर के नगमें ग़मों के ..
हर शब्द फिर ग़ज़ल में ढ़लना सीख लेगा ..

लगाने दो दिल इस फरेबी जहां में ..
चैन खोते ही वो हाथ मलना सीख लेगा ...

सियासत से दुरी बना दो "मुसाहिब"..
वो बातों को जुबां से तलना सीख लेगा ..

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