वो साथी कहाँ मिला जो था रूठा न कभी ..
वो इन्सां कहाँ मिला जो था झूठा न कभी ..
किस बात पे कहें की ज़माने से लडूंगा ..
वो कसम कहाँ मिला जो था टुटा न कभी ..
आईना भी देर तक मुझे सह न सका
वो शीशा कहाँ मिला जो था फुटा न कभी ..
इस सफ़र में कौन खुद को महफूज़ रख सका ..
वो काफिला कहाँ मिला जो था लुटा न कभी ..
किस से कहे "मुसाहिब" दिल की दास्ताँ ..
वो साथ कहाँ मिला जो था छुटा न कभी ..
वो इन्सां कहाँ मिला जो था झूठा न कभी ..
किस बात पे कहें की ज़माने से लडूंगा ..
वो कसम कहाँ मिला जो था टुटा न कभी ..
आईना भी देर तक मुझे सह न सका
वो शीशा कहाँ मिला जो था फुटा न कभी ..
इस सफ़र में कौन खुद को महफूज़ रख सका ..
वो काफिला कहाँ मिला जो था लुटा न कभी ..
किस से कहे "मुसाहिब" दिल की दास्ताँ ..
वो साथ कहाँ मिला जो था छुटा न कभी ..
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