बेरुखी का गैरों पे इलज़ाम न कर ...
दिल लगाया है तो अब आराम न कर ..
लादवा है ये दर्द-ऐ-बेखुदी यारब ...
इसे दिल से न लगा एहतराम न कर ...
गर मय में कतरा अश्क का हो ...
वो मय न उठा फिर जाम न भर ..
बेमेहर मौसम तोड़ देता है आशियाँ ...
अब घर न बना मकाम न कर ..
एक पल भी हो तू मुझसे जुदा ...
मेरे गम तू ऐसा काम न कर ...
ये इल्जाम तो खुशियों पे है लगा ...
ऐ गम तू खुद को बदनाम न कर ...
बदनाम है तू उसको तो न कर ...
चल घर अब यहाँ पर शाम न कर ...
हाँ लुट तो गया इस खेल में तू ...
पर तौहीन-ऐ-मोहब्बत आम न कर ...
"मुसाहिब" जमाना सनमपरस्तों का न रहा ...
दिल लगाने का यहाँ इब्राम न कर ...
दिल लगाया है तो अब आराम न कर ..
लादवा है ये दर्द-ऐ-बेखुदी यारब ...
इसे दिल से न लगा एहतराम न कर ...
गर मय में कतरा अश्क का हो ...
वो मय न उठा फिर जाम न भर ..
बेमेहर मौसम तोड़ देता है आशियाँ ...
अब घर न बना मकाम न कर ..
एक पल भी हो तू मुझसे जुदा ...
मेरे गम तू ऐसा काम न कर ...
ये इल्जाम तो खुशियों पे है लगा ...
ऐ गम तू खुद को बदनाम न कर ...
बदनाम है तू उसको तो न कर ...
चल घर अब यहाँ पर शाम न कर ...
हाँ लुट तो गया इस खेल में तू ...
पर तौहीन-ऐ-मोहब्बत आम न कर ...
"मुसाहिब" जमाना सनमपरस्तों का न रहा ...
दिल लगाने का यहाँ इब्राम न कर ...
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