Wednesday 30 October 2013

जन्नत सी हँसी मेरी ये कायनात होनी है ...

मुद्दत बाद दिल के  मुज़रिम से बात होनी है ...
आँखों से  वही रिमझिम सी बरसात होनी है ...

तजुर्बेकार कहते हैं एक नयी शुरुआत होनी है ...
मेरे हिस्से में हैं शिकवे मेरी फिर मात होनी है ...

मेरी पलकें करो अब नींद से तौबा सारी रात ...
उनके जलवों के चर्चे तो सारी  रात  होनी है ...

गुज़ारिश है नज़रों से उसे बस कैद कर लेना ...
न जाने फिर कहाँ कैसे ये हँसी मुलाक़ात होनी है ...

करेगी ये ज़मीं बोसा उनके पाक क़दमों का ...
जन्नत सी हँसी मेरी ये कायनात होनी है ...

कोई शेख हो दुनिया का या हो वो "मुसाहिब" ..
अंज़ाम ऐ ज़िन्दगी में सबकी वफात होनी है ...

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