होश में बात करते नहीं ...
खोल कर आँख चलते नहीं ...
बेचकर राज़ खुद्दारी के ...
घर सजाने से सजते नहीं ...
जब दिये को भी बुझना ही हो ...
रोके तूफ़ान रुकते नहीं ...
दर्द होता न गर पास में ..
लफ्ज़ ग़ज़लों में ढलते नहीं ...
वक़्त कितना भी मरहम बने ...
ज़ख्म जल्दी से भरते नहीं ...
रब से रखते न रंज आप तो ..
आज तन्हा भी चलते नहीं ...
प्यार सबसे "मुसाहिब" करे ...
लोग पर प्यार करते नहीं ...
खोल कर आँख चलते नहीं ...
बेचकर राज़ खुद्दारी के ...
घर सजाने से सजते नहीं ...
जब दिये को भी बुझना ही हो ...
रोके तूफ़ान रुकते नहीं ...
दर्द होता न गर पास में ..
लफ्ज़ ग़ज़लों में ढलते नहीं ...
वक़्त कितना भी मरहम बने ...
ज़ख्म जल्दी से भरते नहीं ...
रब से रखते न रंज आप तो ..
आज तन्हा भी चलते नहीं ...
प्यार सबसे "मुसाहिब" करे ...
लोग पर प्यार करते नहीं ...
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