हम अपनी वफ़ा गर अपनी दहलीज तक रखते ..
तो दहलीज के बाहर कभी इज्ज़त नहीं बिकती ...
मशविरा दे रहे हैं न गुजरो नापाक गलियों से ..
नापाक इन्सा होते हैं कभी गलियां नहीं होती ...
कलंकित कह के सबने आज पत्थर से उसे मारा ..
चुप क्यू है वो जिसने कहा एक हाथ से ताली नहीं बजती ..
करता रहता है रफ़ू अपने ही गुनाहों पे ..
यूँ ही हमें दुनिया गलती का पुतला नहीं कहती ..
कुछ तो जमाना कर रहा बदलाव अपने में ..
यूँ ही हर तरफ ये भीड़ बेकाबू नहीं होती ...
तो दहलीज के बाहर कभी इज्ज़त नहीं बिकती ...
मशविरा दे रहे हैं न गुजरो नापाक गलियों से ..
नापाक इन्सा होते हैं कभी गलियां नहीं होती ...
कलंकित कह के सबने आज पत्थर से उसे मारा ..
चुप क्यू है वो जिसने कहा एक हाथ से ताली नहीं बजती ..
करता रहता है रफ़ू अपने ही गुनाहों पे ..
यूँ ही हमें दुनिया गलती का पुतला नहीं कहती ..
कुछ तो जमाना कर रहा बदलाव अपने में ..
यूँ ही हर तरफ ये भीड़ बेकाबू नहीं होती ...
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