Wednesday, 21 November 2012

माँ


इस भीड़ में तेरे बिना हु माँ बहुत बेबस,
की तेरा हाथ हो सिर  पे तो धरती जन्नत  लगती है,
खफा होगा खुदा मुझसे तभी मैं दूर हु तुमसे,
की सिर पे आँचल की छाया बड़ी सिद्दत से मिलती है

माँ तू ही है ऐसी दुआ हर पल जो करती है,
तेरी हर दुआ पे माँ मेरी ये उम्र बढती है,
ज़माने भर की है मुझमें बुराई  जानती है माँ 
मगर सबको मुझे अपना दुलारा रोज कहती है |

खफा कितनी भी हो माँ तू,
फिकर उतनी ही करती है,
खुदा की जन्नत से प्यारी भी,
माँ की गोद लगती है

जो तकिये पर मैं लिख दू माँ ऊँगली से,
ये पूरी रात मुझको दूर बुरे ख्वाबों से रखती है,
करूँ अल्फाज़ में इसको बयां ये है बड़ी मुश्किल,
वो मुझको देखकर आता कभी हंसती है रोती है

एक छींक पर सौ साल जीने की दुआ करती,
मेरी तबियत बिगड़ने पर खुदा से भी वो लडती है,
शायद उसे जन्नत खुदा है इसलिए कहता,
वहां पर हर किसी के सिर पे छाया माँ की रहती है

इस भीड़ में तेरे सहारे मैं माँ बढ़ा हरदम  
की तेरी दुआ मिलती रहे फ़तेह फिर रोज होती है,
खफा होगा खुदा मुझसे तभी मैं  दूर हु तुमसे,
की किस्मत में तेरी ममता बड़ी सिद्दत से होती है

Tuesday, 20 November 2012

बहुत सींचे पानियो से


बहुत सींचे पानियो से रक्त से सींचे जरा,
गया फिर वक़्त ऐसा, लाल कर दे रक्त से तू ये धरा,
युद्ध कर तू हर तरफ से, दुश्मन चतुर है खरा ,
छोड़ जब तक की ये साबित हो जाये मरा,
बहुत सींचे पानियो से रक्त से सींचे जरा।।।।

तमन्ना फिर शहादत की वही जागी है जन जन में,
वही अशफाक फिर शामिल वही बिस्मिल है तन मन में,
धधकती आग पे फिर से खड़ा ये हिन्द अपना है,
वही आजाद भारत का फिर सपना है जन गन में |

जरुरत है ही क्या


जरुरत है ही क्या दिवार --दरारों को सरेआम करने की,
की हर कोने में साजिश है तुझे बदनाम करने की,
अभी अपना जिन्हें  कह लो वो बैठे हैं फिराको में,
चलेंगे चाल मौके पे तुझे गुमनाम करने की

बहुत रोया था मैं भी किसी को याद कर कर के रातों में,
ये रंजिश थी मुझे बाज़ार में नीलाम करने की,
वो कहते है मिलो मुझसे बस दिन के उजालो में,
मेरी बस थी तमन्ना साथ में एक शाम करने की।

सोच कर उल्फत की बातें मेरे काफ़िर रहे जिंदा ,
ख्वाइश मौत से पहले है अपनी हर पल नाम करने की,
ये दुनिया मैंने भी कल परसों ही छोड़ी है,
की फुर्सत अब मिली है मुझे आराम करने की

जरुरत है ही क्या अब वक़्त को बर्बाद करने की,
शुरू करते है कब्र में रियाजें एहतराम करने की,
बहुत करते थे शिकायत वो मुझसे मिलने पर,
याद आएगी हुनर अपनी वो हर एक काम  करने की

जरुरत है ही क्या दिवार --दरारों को सरेआम करने की,
की हर कोने में साजिश है तुझे बदनाम करने की |

फिर वही है खार लौटा


फिर वही है खार लौटा बाग़-- हिन्दोस्तान में,
अब वही काफ़िर हुए शामिल थे जो निगेहबान में,
खाक--वतन अब कह रहा जान फंस रही बियाबान में,
है कोई अशफाक ऐसा जो लौटा दे आज़ादी हिन्द के शान में।
उल्फत में है हिन्द--वतन शूली पर सुपुर्द--जान है,
है कोई बेबाक ऐसा हिन्द जिसकी आरज़ू और हिन्द जिसकी जान है,
फिर वही है अश्क लौटा नूर--हिन्दोस्तान में,
अब वही नासूर है शामिल थे जो रुस्तम--ईमान में,
तख़्त--वतन खतरे में है हाथ बढ़ रहा गिरेबान में,
है कोई बिस्मिल कही लौटा दे जो आजादी हिन्द के शान में
फिर वही है खार लौटा बाग़-- हिन्दोस्तान में |