Tuesday, 20 November 2012

जागरण


है प्रभात सो रहा  अंगड़ाईयां ले रात की ,
ये कर्म की रही नहीं यह कौम है बस बात की
हर कोई किसी से कह रहा है जाग अब,
पर  अंगड़ाईयां छूटी कहाँ है दुर्भाग्य की,  है प्रभात सो रहा  अंगड़ाईयां ले रात की |
जागने की चाह सबको पर वेदना सोयी हुई,
हस रही है क्रूरता और संवेदना रोती हुई,
सब रो रहे किस्मत पे अपने हाय ये फूटी हुई,
एक और रात भूखे गुजारे, रोटी बहुत महँगी हुई |
हर तरफ रोती है सूरत यह बात है अब आम की,
आजाद है ये देश पर जिंदगी है गुलाम की,
जी काम में लगता कहाँ अब आदतें आराम की,
हंस रहा राजा यहाँ और हर तरफ है चीख बस आवाम की
 है प्रभात सो रहा  अंगड़ाईयां ले रात की ,
ये धर्म की रही नहीं ये कौम है बस जात की,
हर कोई किसी से कह रहा तू और है तू कोई और है,
पर ये जानता कोई नहीं ,
सब जात हैं इंसान कीहै प्रभात सो रहा अंगड़ाईयां ले रात की |

Sunday, 18 November 2012

दिल्ली

देख अब कैसी हुकूमत है तेरी दिल्ली में ए ग़ालिब 
यहाँ पिंजड़े मैं पंछी है, चमन में काफ़िर रहते है।।।
जहाँ पर मीर रहते थे जहाँ ग़ालिब रहा करते ,
वहां अब कैद बुलबुल है रिहा सैय्याद  रहते है।।।
ठिठुरता है जहाँ ये देश पूरा कपकपी लेकर,

वहां मखमल के चादर में राजा राज करते है
जाने लोग कितने हैं जो भूखे ही हैं सो जाते,
पर दिल्ली में ये राजा अक्सर भोज करते हैं।

आदमी


इस दौर में आगे बढ़ना जो चाहो,
तो आदमीं बनना पड़ेगा,
हर मोड़ पे झूठे खड़े हैं, झूठ तो कहना पड़ेगा,
तो आदमी बनना पड़ेगा

फक्र करना सीख लो अपने फरेबों पर जरा,
अब कहाँ लौटेगा गाँधी जो तू रहा नजरें चुरा,
छोड़ दे तू सोचना क्या सही है क्या गलत,
इस दौर में टिकना जो चाहो तो तुम्हे ठगना पड़ेगा,
तो आदमी बनना पड़ेगा

रुक नहीं सच नहीं तो क्या हुआ झूठ की तो राह है,
आपनी खुशियाँ देख ले क्या हुआ गर दूसरों की आह है,
तेरी किसी को है नहीं क्यों तुझे दूसरों की परवाह है,
सच रो रहा बेबस कहीं, अब झूठ की ही वाह है,
इस भीड़ में दिखना जो चाहो तो बहरूपिया बनना पड़ेगा,
तो आदमी बनना पड़ेगा।

मजहब


किसी मजहब किसी सरहद में बंधी नहीं पाकीजगी तेरी ,
की जो खुसबू किसी मंदिर से वही मस्जिद से भी आती है,

की जब तक याद मजहब था मेरे ख्वाबों पर भी थी बंदिश,
जब मैं भूल गया मजहब अमन की नींद आती है

किसी दोराहे पर खड़े होकर खुद से जंग लड़ते है,
खुद को राम कहते है अल्लाह ही कहा करते,
वो खुद को इस नयी दुनिया का एक इंसान कहते है ,
वो मंदिर से गुजरते है वो मस्जिद पर भी रुकते है

किसी वेदों किसी कलमो में नहीं बंधी मेहरबानियाँ तेरी,
की जो शक्ति पुराण से वही कुरान से भी आती है |

मौला ही कभी खुश है फिर क्यूँ उन्हें चादर चढाते है,
राम ही खुश है फिर क्यूँ उसी की माला जपते हैं,
ये धरती ही बनेगी नूर- -जन्नत अगर मानो,
रहेगी हर तरफ खुशियाँ गर सही इंसान बनते हैं।

किसी मजहब किसी सरहद में बंधी नहीं पाकीजगी तेरी ,
की जो खुसबू किसी मंदिर से वही मस्जिद से भी आती है |

Friday, 16 September 2011

My Work My Passion...

Hi All,
                  I am Software Developer and lives in Delhi. I am working with Softlogique IT Solutions Pvt. Ltd.