Thursday, 20 December 2012

ज़िन्दगी है या उलझन कोई ....

क्या कहिये की ये ज़िन्दगी है या उलझन कोई ....
न रहे तो बला है रह जाये तो बला है .....
सब कहते है की मेरे तजुर्बे से सीखो मेरे रकीब ..
पर वो कौन कही है जो बच  पाया भला है ....
इतना आसाँ न कहो नूर का मिलना यूँ रात से ...
हर एक दीद को सौ बार जला है .....
यूँ गम को छुपाकर हँस गए तो दिल फेक न कहना ..
मेरी तक़दीर को मेरे हँसने से गिला है ...
जो भी मिला दिल सबसे मिला ...
एक दिलबर ही मिला जिस से दिल न मिला है ....
टूट जाती है मोहब्बत की बस्तियां हवा के झोंकों से ...
तोड़ पायेगा न तूफां भी इसे ये नफरत का किला है ..
नींद आती है तब कहाँ जब कोई आँखों में जा बसे ...
अब आ रहा है यकीं ये मोहब्बत का सिला है ....
वो हैराँ थे सोचकर की ये हाथों में इतनी लाली कैसे ..
जो चेहरे से उड़ा है वही हाथों पे खिला है ...
वो कहते है की मुझसे बातें न करो इतनी सारी ..
अपने जज्बातों को छुपाने की ये अच्छी कला है ...
तेरे बिना रह जाएगी ये ज़िन्दगी भी कहाँ ज़िन्दगी मेरी ..
न रहे तो बला है रह जाये तो बला है .....

Wednesday, 19 December 2012

यूँ मेरी ग़ज़ल को न बेआबरू कीजिये ..

यूँ मेरी ग़ज़ल को न बेआबरू कीजिये ..
जो वाह न निकले तो एक आह दीजिये ...
यूँ मेरी ग़ज़ल को न फ़िज़ूल कहिये ...
जो वाजिब न कह सके तो एक गुनाह कहिये ...
माना की न मीर की खुशबू न ग़ालिब का तजुर्बा होगा ...
बस दिल की कही है दिल्लगी कहिये ...
जो वाह न निकले तो एक आह दीजिये ...

Tuesday, 18 December 2012

मैं मैं न रहा ….


वो तो गए पर उनके आने का यकीं रहा
वो पूछते हैं हमारा हाल मुझसे ...
कैसे कहें अब वो वो रहा मैं मैं रहा ….
यूँ खबर थी ज़िन्दगी कर देगी मजबूर ऐसे..
चाहेंगे उम्र भर उनको जो अब मेरा रहा …
सांस की आस तो रह जाती है मरते दम तक बाकी ..
पर जीने की खातिर कभी हम रहे कभी वो रहा …
कितना मुश्किल होगा उस जमीं को आग लगा देना यु ही
जिसको सींचते सींचते घर में तिनका रहा
वो बात तो करते है पर लब्जो का मायना रहा
उम्मीद तो पहले से कम थी अब आरजू रहा ….

Wednesday, 21 November 2012

माँ


इस भीड़ में तेरे बिना हु माँ बहुत बेबस,
की तेरा हाथ हो सिर  पे तो धरती जन्नत  लगती है,
खफा होगा खुदा मुझसे तभी मैं दूर हु तुमसे,
की सिर पे आँचल की छाया बड़ी सिद्दत से मिलती है

माँ तू ही है ऐसी दुआ हर पल जो करती है,
तेरी हर दुआ पे माँ मेरी ये उम्र बढती है,
ज़माने भर की है मुझमें बुराई  जानती है माँ 
मगर सबको मुझे अपना दुलारा रोज कहती है |

खफा कितनी भी हो माँ तू,
फिकर उतनी ही करती है,
खुदा की जन्नत से प्यारी भी,
माँ की गोद लगती है

जो तकिये पर मैं लिख दू माँ ऊँगली से,
ये पूरी रात मुझको दूर बुरे ख्वाबों से रखती है,
करूँ अल्फाज़ में इसको बयां ये है बड़ी मुश्किल,
वो मुझको देखकर आता कभी हंसती है रोती है

एक छींक पर सौ साल जीने की दुआ करती,
मेरी तबियत बिगड़ने पर खुदा से भी वो लडती है,
शायद उसे जन्नत खुदा है इसलिए कहता,
वहां पर हर किसी के सिर पे छाया माँ की रहती है

इस भीड़ में तेरे सहारे मैं माँ बढ़ा हरदम  
की तेरी दुआ मिलती रहे फ़तेह फिर रोज होती है,
खफा होगा खुदा मुझसे तभी मैं  दूर हु तुमसे,
की किस्मत में तेरी ममता बड़ी सिद्दत से होती है

Tuesday, 20 November 2012

बहुत सींचे पानियो से


बहुत सींचे पानियो से रक्त से सींचे जरा,
गया फिर वक़्त ऐसा, लाल कर दे रक्त से तू ये धरा,
युद्ध कर तू हर तरफ से, दुश्मन चतुर है खरा ,
छोड़ जब तक की ये साबित हो जाये मरा,
बहुत सींचे पानियो से रक्त से सींचे जरा।।।।

तमन्ना फिर शहादत की वही जागी है जन जन में,
वही अशफाक फिर शामिल वही बिस्मिल है तन मन में,
धधकती आग पे फिर से खड़ा ये हिन्द अपना है,
वही आजाद भारत का फिर सपना है जन गन में |

जरुरत है ही क्या


जरुरत है ही क्या दिवार --दरारों को सरेआम करने की,
की हर कोने में साजिश है तुझे बदनाम करने की,
अभी अपना जिन्हें  कह लो वो बैठे हैं फिराको में,
चलेंगे चाल मौके पे तुझे गुमनाम करने की

बहुत रोया था मैं भी किसी को याद कर कर के रातों में,
ये रंजिश थी मुझे बाज़ार में नीलाम करने की,
वो कहते है मिलो मुझसे बस दिन के उजालो में,
मेरी बस थी तमन्ना साथ में एक शाम करने की।

सोच कर उल्फत की बातें मेरे काफ़िर रहे जिंदा ,
ख्वाइश मौत से पहले है अपनी हर पल नाम करने की,
ये दुनिया मैंने भी कल परसों ही छोड़ी है,
की फुर्सत अब मिली है मुझे आराम करने की

जरुरत है ही क्या अब वक़्त को बर्बाद करने की,
शुरू करते है कब्र में रियाजें एहतराम करने की,
बहुत करते थे शिकायत वो मुझसे मिलने पर,
याद आएगी हुनर अपनी वो हर एक काम  करने की

जरुरत है ही क्या दिवार --दरारों को सरेआम करने की,
की हर कोने में साजिश है तुझे बदनाम करने की |

फिर वही है खार लौटा


फिर वही है खार लौटा बाग़-- हिन्दोस्तान में,
अब वही काफ़िर हुए शामिल थे जो निगेहबान में,
खाक--वतन अब कह रहा जान फंस रही बियाबान में,
है कोई अशफाक ऐसा जो लौटा दे आज़ादी हिन्द के शान में।
उल्फत में है हिन्द--वतन शूली पर सुपुर्द--जान है,
है कोई बेबाक ऐसा हिन्द जिसकी आरज़ू और हिन्द जिसकी जान है,
फिर वही है अश्क लौटा नूर--हिन्दोस्तान में,
अब वही नासूर है शामिल थे जो रुस्तम--ईमान में,
तख़्त--वतन खतरे में है हाथ बढ़ रहा गिरेबान में,
है कोई बिस्मिल कही लौटा दे जो आजादी हिन्द के शान में
फिर वही है खार लौटा बाग़-- हिन्दोस्तान में |