Wednesday, 18 December 2013

असर आप पर तब ये कर जाएगी ...

असर आप पर तब ये कर जाएगी ...
छू कर आपको जब गुज़र जाएगी ...

करें तैरने का जो हम हौसला ...
समंदर की आदत सुधर जाएगी ....

ज़मीं आपकी आसमां आपका ...
निकल कर भी ये जां किधर जाएगी ...

ये चाँद अब जो छा आसमां पे गया ...
सितारों पे अब क्या नज़र जाएगी ...

"मुसाहिब" किनारा भी मिल जाएगा ...
ये तन्हा भी कब तक लहर जाएगी ...

लफ्ज़ ग़ज़लों में ढलते नहीं ...

होश में बात करते नहीं ...
खोल कर आँख चलते नहीं ...

बेचकर राज़ खुद्दारी के ...
घर सजाने से सजते नहीं ...

जब दिये को भी बुझना ही हो ...
रोके तूफ़ान रुकते नहीं ...

दर्द होता न गर पास में ..
लफ्ज़ ग़ज़लों में ढलते नहीं ...

वक़्त कितना भी मरहम बने ...
ज़ख्म जल्दी से भरते नहीं ...

रब से रखते न रंज आप तो ..
आज तन्हा भी चलते नहीं ...

प्यार सबसे "मुसाहिब" करे ...
लोग पर प्यार करते नहीं ...

मिले आज ख़त जो पुराने लिखे हैं ..

फ़साने वो जिन में सुहाने लिखे हैं ...
मिले आज ख़त जो पुराने लिखे हैं ...

अभी तक भी बातें कही जो नहीं हैं ..
उन्हें छेड़  कर  ही तराने लिखे हैं ...

कहीं वो कहानी भी धुल ही न जाये ...
बुजुर्गों के दिल में ज़माने लिखे हैं ...

यहाँ अब ग़ज़ल से कहाँ प्यार होता ...
यहाँ अट -पटे सबने गाने लिखे हैं ...

कभी अश्क़ आँखों में हो या खुशी हो ...
"मुसाहिब" ग़ज़ल के बहाने लिखे हैं ...